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________________ २३४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ व्याख्यानात् । अथ केयं तिर्यग्योनिः ? तिरोभावात्तिर्यग्योनिः । तिरोभावो न्यग्भावो गुणभाव उप बाह्यत्वमित्यनर्थान्तरम् । ततः कर्मोदयापादितान्नयग्भावात्तिर्यग्योनिरित्याख्यायते । योनिर्जन्माधिष्ठानरूपा सचित्तादिरुक्ता । तिरश्ची योनिर्येषां ते तिर्यग्योनयः । ते च त्रसस्थावरविकल्पा व्याख्याताः । तेषां तु तिरश्चां सर्वलोकव्यापित्वाद्देवमनुष्यनारकवदाधारविशेषो नोक्तः । नारकादीन्सर्वानुक्त्वा तेभ्योऽन्ये शेषास्तिर्यञ्च इति ग्रन्थगौरवमन्तरेण शेषशब्देन तेषां प्रतिपत्तिश्च यथा स्यादित्यत्र निर्देश: । कृतो न नारकानन्तरमित्यलं विस्तरेण । नारकाणां मनुष्याणां तिरश्चां च स्थितिरुक्ता। संप्रति देवानामुच्यते । तत्र चादौ निर्दिष्टानां भवनवासिनां तावत् स्थितिप्रतिपादनार्थमाह स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमाहीनमिता ॥२८॥ प्रश्न-यह तिर्यंच योनि कौनसी है ? उत्तर-तिरोभावात् तिर्यग्योनिः तिरोभाव को तिर्यग्योनि कहते हैं, तिरोभाव, न्यग्भाव, गुणभाव और उपबाह्यत्व ये शब्द एकार्थवाची हैं, उस कर्मोदय से उत्पन्न हए न्यग्भाव के कारण तिर्यग्योनि ऐसा कहते हैं । सचित्तादि जन्म के स्थानको योनि कहते हैं ऐसा पहले कह दिया है । तिर्यंच योनि है जिनके वे तिर्यग्योनि वाले कहलाते हैं। इनके त्रस स्थावर भेद पहले कह आये हैं। इन तिर्यंच जीवों का देव नारकी और मनुष्यों के समान आधार विशेष नहीं कहा है, क्योंकि ये जीव सर्व लोक में व्याप्त हैं। नारकी आदि सर्व जीवों का कथन करके उनसे शेष जो जीव हैं वे तिर्यंच हैं इसप्रकार कथन किया है इससे ग्रंथ का गौरव-( ग्रन्थ का बढ़ना ) नहीं हो और शेष शब्द से उनका ज्ञान भी होवे इसप्रकार का निर्देश किया गया है, और इसी वजह से नारकी के अनन्तर कथन नहीं किया, अब विस्तर से बस हो। नारकी मनुष्य और तिर्यंचों की आयु कह दी थी अब देवों की आय कहते हैं। उनमें आदि में कहे गये भवनवासियों की स्थिति को बतलाने के लिये सूत्रावतार होता है सूत्रार्थ-असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार द्वीपकुमार और शेष छह कुमारों की स्थिति क्रमशः एक सागर तीन पल्य और आगे आधा आधा पल्य कम इस रूप से कही गई है।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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