SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८ ) १४. भवनत्रिकों के देवियों की आयु अपने अपने देवों की जितनी आयु है उससे आठवें भाग प्रमाण होती है-'भवनवास्यादिनिकाय अय देवायुषोऽष्टमांशस्तद् देवायुषः प्रमाणमिति चात्र बोद्धव्यम्' [अ. ४ सू. २८] १५. निद्रा परिणाम निद्रादि कर्म तथा साता कर्म के उदय से होता है। [ अ. ८ सू. ७ ] १६. एकेन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के जीव आयुकर्म को ( मनुष्य की तथा तिथंच की आयु बांधे तो पूर्व कोटी की बांध सकते हैं ? (अधिक से अधिक) [ अ. ८ सू. १७ ] इस प्रकार इस ग्रन्थ के विषय का यह परिचय है इसमें स्थान स्थान पर व्याकरण के सूत्र उल्लिखित हैं उनको ग्रन्थ के अन्त में परिशिष्ट में दिया है। मुमुक्षु भव्य जीव इस तत्त्वों के प्रतिपादक ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करें एवं रत्नत्रय को धारण कर आत्म कल्याण करें। अलं विस्तरेण । -आर्यिका शुभमती
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy