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________________ २२४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ सौधर्मादीनां शब्दानां यथासम्भव मितरेतरयोगकृतद्वन्द्व वृत्तीनामाधेयभूतदेवापेक्षयाऽधिकरणत्वनिर्देशः । तत्र मेरोश्चूलिकाया उपर्युत्तमभोगभूमिज केशान्तरमात्रे व्यवस्थितमृतुविमानमिन्द्रकं सौधर्मस्य सम्बन्धीत्यागमे प्रतिपादितम् । तथा तत्रैवोपर्युपरीत्यनेन द्वयोर्द्वयोर्दक्षिणोत्तरयोः कल्पयोरभिसम्बन्धो वेदितव्यः । तद्यथा प्रथमयोः सौधर्मेशानयोः कल्पयोर्वैमानिकास्तिष्ठन्ति सौधर्मेशानीयाः । तयोरुपरि सानत्कुमारमाहेन्द्रयोस्तद्भवाः । तयोरुपरि ब्रह्मब्रह्मोत्तरयोस्तद्भवाः तयोरुपरि लान्तवकापिष्ठयोस्तद्भवाः । तयोरुपरि शुक्रमहाशुक्रयोस्तद्भवाः । तयोरुपरि शतारसहस्रारयोस्तद्भवाः । तयो - रुपर्यानतप्रारणतयोस्तद्भवाः । तयोरुपर्यारणाच्युतयोस्तद्भवाः । तयोरुपरि नवसु ग्रैवेयकेषु तद्भवाः । तेषामुपरि नवस्वनुदिशेषु तद्भवाः । तेषामुपरि विजयवैजयन्तजयन्तापराजितेषु तद्भवाः । सर्वार्थसिद्धौ च सर्वार्थसिद्धदेवाः प्रतिवसन्तीति सूत्र निर्देश विशेषवशादवसीयते । श्रानतप्राणतयोरारणाच्युतयोश्च समासेनैव सिद्धे पृथग्विभक्तिनिर्देश: प्रत्येकं तयोरिन्द्रसम्बन्धज्ञापनार्थम् । तथाधः सौधर्म आदि पदों का यथा संभव इतरेतर द्वन्द्व समास किया गया है तथा ये विमान आधेयभूत देवों के आधार हैं अतः अधिकरण निर्देश किया है । मेरु की चूलिका से ऊपर उत्तम भोगभूमिज मनुष्य के एक केश का अन्तराल छोड़कर सौधर्म स्वर्ग संबंधी पहल ऋतु नाम का इन्द्रक विमान व्यवस्थित है ऐसा आगम में प्रतिपादन किया है । तथा उसीके ऊपर ऊपर क्रम से दो दो दक्षिण उत्तर कल्प हैं ऐसा सम्बन्ध कर लेना चाहिये । इसीको बताते हैं - सौधर्म और ऐशान नामके प्रथम दो कल्पों में सौधर्म ऐशान वैमानिक देव रहते हैं । उनके ऊपर सानकुमार माहेन्द्र स्वर्गों में उनमें उत्पन्न होने वाले देव निवास करते हैं । उन दो के ऊपर ब्रह्म ब्रह्मोत्तर कल्पों में उनमें उत्पन्न होने वाले देव रहते हैं । उन दो कल्पों के ऊपर लांव और कापिष्ठ नाम के कल्प हैं उनमें उत्पन्न होने वाले देव उन्हीं में निवास करते हैं । उनके ऊपर शुक्र महाशुक्र कल्प हैं, उनमें उत्पन्न होने वाले देव रहते हैं । उनके ऊपर शतार सहस्रार में उनमें उत्पन्न हुए देव रहते हैं । उनके ऊपर जाकर आनत प्राणत में उनमें उत्पन्न होनेवाले देव रहते हैं । उनके ऊपर आरण अच्युत में उनमें उत्पन्न हुए देव रहते हैं, उनके ऊपर नौ ग्रेवेयकों में उनमें उत्पन्न हुए देव निवास करते हैं । उनके ऊपर नौ अनुदिशाओं में उत्पन्न हुए देव निवास करते हैं । उनके ऊपर विजय वैजयन्त जयन्त और अपराजित में उनमें उत्पन्न देव रहते हैं । और सर्वार्थ सिद्धि में सर्वार्थ सिद्धि संबंधी देव निवास करते हैं । इसप्रकार सूत्र के निर्देश से जाना जाता है । आनत प्राणत और आरण अच्युत का समास करना था । किन्तु उनमें प्रत्येक में इंद्र हैं इस बात को बतलाने के लिए समास नहीं किया है । तथा
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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