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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती ऽनुक्तसमुच्चयार्थस्ततोऽस्मात्समाद्भूभागादूर्ध्वं सप्तयोजनशतानि नवत्युत्तराण्युत्पत्य सर्वज्योतिषा मधोभाविन्यस्तारकाश्चरन्ति । ततो दशयोजनान्युत्पत्य सूर्याश्चरन्ति । ततोऽशीतियोजनान्युत्पत्य चन्द्रमसो भवन्ति । ततस्त्रीणि योजनान्युत्पत्य नक्षत्राणि पर्यटन्ति । ततस्त्रीणि योजनान्युत्पत्य बुधाः । ततस्त्रीणि योजनान्युत्पत्य शुक्राः । ततस्त्रीणि योजनान्युत्पत्य बृहस्पतयः । ततश्चत्वारि योजनान्युत्पत्याङ्गारकाः । ततश्चत्वारि योजनान्युत्पत्य शनैश्चराश्चरन्तीति । स एष ज्योतिष्कविषयो नभ:प्रदेशो दशोत्तरयोजनशतबहलस्तिर्यग्घनोदधिपर्यन्त इति व्याख्येयम् उक्त च
णवदुत्तरसत्तसया दससीदि चदुतिगं च दुचउक्कम् ।
तारा रवि ससि रिक्खा बुह भग्गव गुरु अङ्गिरार सणी ।। अथैषां ज्योतिष्काणां गतिविशेषविप्रतिपत्तिनिराकरणार्थमाह
मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नलोके ।। १३ ॥
ऊपर जाकर चन्द्र विमान हैं । उससे तीन योजन ऊपर जाकर नक्षत्र घूमते हैं । उसके ऊपर तीन योजन जाकर बुध है । उसके तीन योजन ऊपर जाकर शुक्र है । उससे तीन योजन ऊपर जाकर बृहस्पति है । उससे चार योजन ऊपर जाकर मंगल है । उससे चार योजन ऊपर जाकर शनिग्रह है यह ज्योतिष्क देव संबंधी आकाश प्रदेश है वह कुल मिलाकर एक सौ दस योजन मोटाई युक्त है और तिरछा घनोदधि वात पर्यन्त फैला हुआ है ऐसा व्याख्यान करना चाहिये । कहा भी है
___ तारा, सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, बुध, शुक्र, गुरु, मंगल और शनि ये ज्योतिष्क जाति के देवों के विमान इस धरातल से ऊपर सात सौ नब्बे योजन जाने पर आते हैं सर्व प्रथम तारे हैं पुनः क्रमशः दश, अस्सी, चार बार तीन तीन और दो बार चार चार इतने इतने योजन ऊपर ऊपर जाकर आते हैं ।। १ ॥
अथानंतर ज्योतिष्क के गमन के विषय में जो विवाद है उसका निराकरण करने के लिये अग्रिम सूत्र कहते हैं
- सूत्रार्थ-मनुष्य लोक में [ अढ़ाई द्वीप में ] ये ज्योतिष्क विमान नित्य गति शील होकर मेरु की प्रदक्षिणा करते हैं ।