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चतुर्थोऽध्यायः
[२१३ भवति । तदनुरूपभावनाविशेषतस्तेषां तदुपार्जनादिति व्याख्येयम् । इदानीमाद्यनिकायदेवानां दशविकल्पानां सामान्यविशेषसंज्ञाप्रतिपादनार्थमाह
भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमाराः ॥१०॥
भवनानि गृहाणि । भवनेषु वसन्तीत्येवंशीला भवनवासिन इति । भवनवासिनामकर्मोदयादादिनिकायदेवानां सामान्यसंज्ञेयम् । तद्विशेषनामकर्मोदयादसुरादयो विशेषसंज्ञा वेदितव्याः । असुरादीनांशब्दानामितरेतरयोगे द्वन्द्ववृत्तीनां कुमारशब्देन सह कर्मधारय क्रियते । तद्यथा-असुराश्च नागाश्च विद्युतश्च सुपर्णाश्चाग्नयश्च वाताश्च स्तनिताश्चोदधयश्च द्वीपाश्च दिशश्च असुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिशः । ते च ते कुमाराश्च असुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमारा इति सर्वेषां देवानामवस्थितवयः स्वभावत्वेप्युद्धतवेषभूषायुधयानवाहनक्रीडनादिक कुमाराणामिवैषामाभासत इति भवनवासिषु कुमारव्यपदेशो रूढः । स च कुमारशब्दोऽसुरादिभिः प्रत्येकमभिसम्बध्यते । असुरकुमारा नागकुमारा विद्य त्कुमारा: सुपर्णकुमारा अग्निकुमारा वात
किया था अतः इस तरह के उद्रेक होते हैं ऐसा व्याख्यान करना चाहिये, अभिप्राय यह है कि पुरुष वेद आदि कर्म के उदय की तरतमता से प्रवीचार में अंतर पड़ता है और कर्मोदय में तरतमता भी पूर्व भव में होने वाले तदनुरूप परिणाम के कारण होती है ।
____अब प्रथम निकाय के दश भेद वाले देवों की सामान्य विशेष संज्ञा का प्रतिपादन करते हैं
सूत्रार्थ-भवनवासी देव दश भेद वाले हैं-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार।
भवन गृहों को कहते हैं, भवनों में रहने वाले भवनवासी हैं। भवनवासी नाम कर्म के उदय से प्रथम निकाय के देवों की यह संज्ञा है । पुनः उसीके विशेष नाम कर्म के उदय से असुर आदि विशेष संज्ञा होती है। असुर आदि शब्दों का इतरेतर द्वन्द्व करके कुमार शब्द के साथ कर्मधारय समास करना ।
___ यद्यपि सभी देव अवस्थित वय वाले स्वभाव वाले होते हैं फिर भी इन असुर आदि की वेषभूषा, आयुध, यान, वाहन, क्रीडनादिक उद्धत होते हैं, ये कुमार-किशोर के समान प्रतीत होते हैं अतः भवनवासियों में कुमार नाम रूढ़ है । कुमार शब्द प्रत्येक के साथ जोड़ना, असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार,