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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ
वर्जा: । व्यन्तराश्च ज्योतिष्काश्च व्यन्तरज्योतिष्काः । व्यन्तरेषु ज्योतिष्केषु च त्राय स्त्रिशान्लोकपालांश्च वर्जयित्वा परेऽष्टौविकल्पाः सन्तीति समुदायार्थः । क्व कियदिन्द्रा देवा भवन्तीत्याहपूर्वोन्द्राः ।। ६ ।।
पूर्वयोर्भवनवासिव्यन्तरनिकाययोरित्यर्थः । द्विवचनसामर्थ्यादुभयोरपि पूर्वत्वमुत्तरनिकायापेक्षया वेदितव्यम् । द्वौ द्वाविन्द्रौ येषां देवानां ते द्वीन्द्राः । श्रन्तर्नीत वीप्सार्थोऽयं निर्देशो यथा सप्तपटापद इति । तद्यथा भवनवासिनिकाये तावदसुरकुमाराणां द्वाविन्द्रौ चमरवैरोचनौ । नाग कुमाराणां धरणभूतानन्दौ । विद्युत्कुमाराणां हरिसिंहहरिकान्तौ । सुपर्णकुमाराणां वेणुदेववेणुतालिनौ । श्रग्निकुमाराणामग्निशिखाग्निमाणवको | वातकुमाराणां वैलम्बप्रभजनौ । स्तनितकुमाराणां
और ज्योतिष्कों में त्रास्त्रिश और लोकपाल को छोड़कर शेष आठ भेद हैं यह समुदार्थ हुआ ।
कहां पर कितने इन्द्र होते हैं ऐसा प्रश्न होने पर सूत्र कहते हैं
सूत्रार्थ - पूर्व के दो निकायों में दो दो इन्द्र होते हैं । पूर्व के अर्थात् भवनवासी और व्यन्तर निकाय में दो दो इन्द्र हैं । पूर्वयोः ऐसा द्विवचन होने से दोनों निकायों को पूर्वपना उत्तर निकायों की अपेक्षा आ जाता है । दो दो इन्द्र जिन देवों के होते हैं वे "द्वीन्द्राः " कहलाते हैं । 'द्वि:' इसमें वीप्सा अर्थपरक निर्देश है, जैसे सप्तपर्णः, अष्टापदः इत्यादि पदों में वीप्सा अर्थ निहित होता है [ सप्त सप्त पर्णानि यस्यासौ सप्तपर्णः वृक्षविशेषः, अष्टौ अष्टौ पदाः यस्यासौ अष्टापदः इत्यादि में जैसे सात आठ संख्या को दो बार दुहरा कर अर्थ निकलता है वैसे यहां द्वौ द्वौ इन्द्रौ येषां ते द्वीन्द्राः ऐसा अर्थ है ] अब उन इन्द्रों को बतलाते हैं - भवनवासी निकाय में असुरकुमार के दो इन्द्र हैं चमर और वैरोचन । नागकुमारों के धरण और भूतानंद । विद्युत्कुमारों के हरिसिंह और हरिकान्त, सुपर्णकुमारों के वेणुदेव और वेणुताली | अग्निकुमार देवों के अग्निशिखी और अग्निमाणवक | वातकुमारों के वैलंब और प्रभंजन, स्तनितकुमारों के सुघोष और महाघोष, उदधिकुमारों के जलकान्त और जलप्रभ, द्वीपकुमारों के पूर्ण और वशिष्ट तथा दिक्कुमारों के अमित गति और अमित वाहन इन्द्र हैं ।
व्यंतर निकाय में किन्नरों के दो इन्द्र हैं किन्नर और किंपुरुष । किंपुरुष जाति के व्यन्तरों के सत्पुरुष और महापुरुष, महोरग देवों के अतिकाय और महाकाय, गन्धर्वों के गीतरति और गीतयश, यक्षों के पूर्णभद्र और मणिभद्र, राक्षसों के भीम और