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चतुर्थोऽध्यायः
[ २०५ मूलनिवर्तनातः पीतपद्मशुक्ललेश्यानि शरीराणि । उत्तरनिर्वर्तनातः शुक्लानि । देवीनां मूलनिर्वर्तनातः पीतलेश्यानि । उत्तरनिर्वर्तनातः षड्लेश्यानि । नारकाणां कृष्णलेश्यान्येव । विशेषतः पुनर्भावलेश्यो च्यते-मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगैर्जनितः प्राणिनां संस्कारो भावलेश्योक्ता। तत्र यस्तीव्रसंस्कारः स कापोती लेश्या । तीव्रतरो नीललेश्या। तीव्रतमः कृष्णलेश्या । मन्दः संस्कारः पीतलेश्या । स एव मन्दतरः पद्मलेश्या । मन्दतमस्तु शुक्ललेश्येति च ज्ञेयम् । एताः षडपि लेश्या अनन्तभागवृद्धयसङ्ख्यातभागवृद्धिसङ्ख्यातभागवृद्धिसङ्ख्यातगुणवृद्धयसङ्ख्यातगुणवृद्धयनन्तगुणवृद्धिक्रमेण प्रत्येकं षट्स्थान पतिता भवन्ति । एतासां दृष्टान्तद्वारेण लक्षणमुच्यते-तत्र षण्णां फलार्थिनां पुसां तरोनिर्मूलोच्छेदे तीव्रतमकषायानुरञ्जितमनोवाक्कायप्रवृत्तित्रयं भावलेश्या कृष्णा । तरोः स्कन्धोच्छेदे तीव्रतरकषायानुरञ्जितं तत्त्रितयं नीला । तरोः शाखोच्छेदे तीवकषायानुरञ्जितं तत्कापोती। तरोरुपशाखोच्छेदे मन्दकषायानुरञ्जितं तत्पीता । तरोः फलोच्चये मन्दतरकषायानुरञ्जितं तत्पद्मा । तरोरध:पतित
शरीर मूल निवर्तना से पीत, पद्म शुक्ल वर्ण वाले हैं। उत्तर निर्वर्तना की अपेक्षा शुक्ल वर्ण हैं । देवियों के शरीर मूल निवर्तना की अपेक्षा पीत वर्ण हैं अर्थात् जन्मतः जो शरीर हैं वे देवियों के एक पीत वर्णवाले हैं और उत्तर निर्वर्तना की अपेक्षा छह वर्ण वाले शरीर होते हैं सभी नारकियों के शरीर कृष्ण वर्ण ही हैं ।
पुनः विशेष रूप से भाव लेश्या का कथन करते हैं-मिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग द्वारा जीवों का जो संस्कार होता है वह भाव लेश्या है। उनमें जो तीव्रसंस्कार है वह कापोती लेश्या है, तीव्रतर संस्कार नील लेश्या है। तीव्रतम संस्कार कृष्ण लश्या है । मन्द संस्कार पीत लेश्या है । मंदतर संस्कार पद्म लेश्या है । मंदतम संस्कार शुक्ल लेश्या है । इन छहों भाव लेश्याओं के अनंत भाग वृद्धि, असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि, संख्यात गुणवृद्धि, असंख्यात गुणवृद्धि, अनंत गुण वृद्धि ये षड् गुणी वृद्धि स्थान होते हैं।
___अब इन लेश्याओं के लक्षण दृष्टान्त द्वारा कहते हैं-फलों के इच्छुक छह पुरुष हैं। उनमें जिस पुरुष के फल के वृक्ष को जड़ से काटने के भाव हैं तीव्रतम कषाय से अनुरंजित मन, वचन काय की जो प्रवृत्ति त्रय है वह भाव कृष्ण लेश्या कहलाती है । उक्त वृक्ष का स्कन्ध-तना काटने के जिसके भाव हैं वह पुरुष नील लेश्या वाला है उसके तीव्र तर कषायानुरंजित तीन योग की प्रवृत्ति है। जिस पुरुष के वृक्ष की शाखा काटने के भाव हैं वह भाव तीव्र कषाय से अनुरंजित योग प्रवृत्ति रूप कापोती लेश्या है। जिस पुरुष के वृक्ष की उपशाखा काटने के भाव हैं वह मंद कषाय से अनुरंजित