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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तो षड्लेश्याङ्गा मतेऽन्येषां ज्योतिष्का भौमभावनाः ।
कापोतमुद्गगोमूत्रवर्णलेश्यानिलाङ्गिनः ॥इति।। तेषामेवापर्याप्तकानां कृष्णनीलकापोत्यस्तिस्रो भावतो लेश्या भवन्ति । पर्याप्तकानां तु तेषामेकैव जघन्या पीतलेश्येति सूत्रे भावलेश्याचतुष्टयमुक्तम् । एतस्य प्रसङ्ग नात्र साधारणवृत्त्या षण्णां लेश्यानां शरीरमाश्रित्य तावत् प्ररूपणं क्रियते । तत्र बादराणां पृथिवीकायिकानां षड्लेश्यानि शरीराणि । तथा अप्कायिकानां शुक्ललेश्यानि । तथा अग्निकायिकानां तेजोलेश्यानि । तथा वातकायिकानां कापोतलेश्यानि । तथा वनस्पतिकायिकानां षड्लेश्यानि । सर्वेषां सूक्ष्माणि शरीराणि कापोतलेश्यानि । सर्वे चापर्याप्तकाः कापोतलेश्याङ्गाः। सर्वेषां च विग्रहगतौ शुक्ललेश्यानि शरीराणि । कार्मणं शुक्ललेश्यं । तैजसं तेजोलेश्यम् । तिर्यमनुष्याणामौदारिक षड्लेश्यं । सर्वेषां देवानां
सिद्धांत आलाप में कहा है कि अन्य किन्हीं के मत में ज्योतिष्क, व्यंतर और भवनवासी के द्रव्य लेश्या छहों होती हैं अर्थात् ये देव छह प्रकार के वर्ण वाले शरीरों से युक्त होते हैं । वायुकायिक जीवों के शरीर कापोत, मूग तथा गोमूत्र सदृश वर्ण वाले होते हैं [ घनवात गोमूत्र वर्ण का, घनोदधिवात मूग वर्ण का और तनुवात नाना वर्ण का है। ]
भावन, व्यंतर और ज्योतिष्क देवों के अपर्याप्त अवस्था में कृष्ण, नील और कापोत भाव लेश्या होती हैं। और पर्याप्त अवस्था में एक जघन्य पीत लेश्या होती है, इसप्रकार सूत्र में भाव की अपेक्षा उक्त देवों की चार लेश्या बताई गई हैं। ___इस प्रसंग में साधारण रूप से शरीर का आश्रय लेकर छह लेश्या का निरूपण करते हैं अर्थात् द्रव्य लेश्या बतलाते हैं-बादर पृथिवी कायिकों के शरीर छह लेश्या वाले-वर्ण वाले होते हैं। जलकायिकों के शरीर शुक्ल वर्ण के हैं। अग्निकायिकों के शरीर तेज लेश्या-पीत वर्ण के हैं । वायुकायिकों के शरीर कपोत वर्ण हैं। वनस्पतिकायिकों के शरीर छह लेश्या वाले-वर्ण वाले होते हैं।
सभी सूक्ष्म जीवों के सूक्ष्म शरीर कपोत वर्ण के हैं । सभी अपर्याप्तकों के शरीर कपोत वर्ण के हैं । विग्रह गति में सभी के शरीर [ कार्मण ] शुक्ल वर्ण के हैं। कार्मण शरीर शुक्ल है। तेजस शरीर तेजो लेश्या-पीत वर्ण है। तिर्यञ्च और मनष्यों के औदारिक शरीर छह लेश्या वाले अर्थात् छह वर्ण वाले हैं। सभी देवों के