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________________ तृतीयोऽध्यायः [ २०१ सकललोकालोकस्वभावश्रीमत्परमेश्वरजिनपतिमत विततमतिचिदचित्स्वभावभावाभिधानसाधितस्वभावपरमाराध्यतममहासदान्तः श्रीजिन चन्द्र भट्टारकस्तच्छिष्यपण्डितश्रीभास्करनन्दिविरचितमहाशास्त्रतत्त्वार्यवृत्ती सुखबोधायां तृतीयोऽध्यायस्समाप्त। जो चन्द्रमा की किरण समूह के समान विस्तीर्ण तुलना रहित मोतियों के विशाल हारों के समान एवं तारा समूह के समान शुक्ल निर्मल उदार ऐसे परमौदारिक शरीर के धारक हैं, शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि की उज्ज्वल ज्वाला द्वारा जला दिया है घाति कर्मों रूप ईन्धन समूह को जिन्होंने ऐसे, तथा सकल विमल केवलज्ञान द्वारा संपूर्ण लोकालोक के स्वभाव को जानने वाले श्रीमान् परमेश्वर जिनपति के मत को जानने में विस्तीर्ण बुद्धिवाले, चेतन अचेतन द्रव्यों को सिद्ध करने वाले परम आराध्य भूत महासिद्धान्त ग्रन्थों के जो ज्ञाता हैं ऐसे श्री जिनचन्द्र भट्टारक हैं उनके शिष्य पंडित श्री भास्कर नन्दी विरचित सुखबोधा नामवाली महाशास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र की टीका में तृतीय अध्याय पूर्ण हुआ। प चार पूण हुआ। . ... . .
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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