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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तो प्रक्षिप्य त्रीन्वारान्वर्गितसंवगिते कृते उत्कृष्टानन्तानन्तं न प्राप्नोति ततोऽनन्ते केवलज्ञानदर्शने च प्रक्षिप्ते उत्कृष्टानन्तानन्तं भवति । तत एकरूपेऽपनीतेऽजघन्योत्कृष्टानन्तानन्तं भवति । यत्रानन्तानन्तमार्गणा तत्राजघन्योत्कृष्टानन्तानन्तं ग्राह्यम् । अनन्तस्य सन्दृष्टिः खकारः षोडशाङ्को वा ।
उपमाप्रमाणमष्टविधं-पल्यसागरसूचीप्रतरघनाङ गुलजगच्छ्रेणीलोकप्रतरलोकभेदात् । अन्तादिमध्यहीनोऽविभागोऽतीन्द्रिय एकरसगन्धवर्णो द्विस्पर्शः परमाणुः । अनन्तानन्तपरमाणुसङ्घातपरिमाणादाविर्भूता उत्सज्ञास का। अष्टावुत्सज्ञासंहताः सञ्ज्ञास का । अष्टौ सज्ञासचा एकस्तृ टिरेणुः । अष्टौ तृटिरेणवस्संहता एकस्त्रसरेणुः । अष्टौ त्रसरेणव एको रथरेणुः । अष्टौ रथरेणवस्संहता एका देवकुरूतरकुरुमनुजकेशाग्रकोटी भवति । ता अष्टौ समुदिता एका रम्यकहरिवर्षमनुजकेशाग्रकोटी भवति । ता अष्टौ संहता हैरण्यवतहैमवतमनुजकेशाग्रकोटी भवति । ता अष्टौ सम्पिण्डिता भरतरावतविदेहमनूजकेशाग्रकोटी भवति । ता अष्टौ संहता एका लिक्षा भवति । अष्टौ लिक्षाः संहता एका यूका भवति । अष्टौ यूका एक यवमध्यम् । अष्टौ यवमध्यान्येकमङ्गलमुत्सेधाख्यम् । एतेन नारकतैर्यग्योनानां
वर्गित संवर्गित किया तो भी उत्कृष्ट अनंतानंत गणना प्राप्त नहीं हो पायी अतः अनंत प्रमाण वाले केवल ज्ञान और केवल दर्शन [ के अविभागी प्रतिच्छेद ] को उसमें डाला तब उत्कृष्ट अनंतानंत का प्रमाण आया, उसमें से एक रूप निकाला तो अजघन्योत्कृष्ट अनंतानंत होता है । जहां अनंतानंत मार्गणा ( संख्या ) बताते हैं वहां अजघन्योत्कृष्ट अनंतानंत ग्रहण करना । अनंत की संदृष्टि खकार या षोडश अंक है ।
उपमा प्रमाण आठ प्रकार का है-पल्य, सागर, सूचीअंगुल, प्रतरांगुल घनांगुल, जगत श्रेणि, लोक और प्रतर लोक । अन्त आदि और मध्य से रहित, अविभागी, अतीन्द्रिय, एक रस, एक गंध, एक वर्ण और दो स्पर्श वाला परमाणु होता है । अनंतानंत परमाणुओं के समूह से प्रगट उत्संज्ञासंज्ञ नाम का स्कंध बनता है । आठ उत्संज्ञ एक संज्ञासंज्ञ, आठ संज्ञासंज्ञ का एक तृटि रेणु, आठ तृटि रेणुओं के समुदित होने पर एक त्रस रेणु बनता है । आठ त्रस रेणु का एक रथरेणु । आठ रथरेणु का देवकूरु उत्तर कुरु के मनुष्य के केश का अग्रभाग होता है, वे आठ समुदित होने पर रम्यक और हरिवर्ष के मनुष्य का एक बालाग्र होता है । वे आठ समुदित हुए तो हैरण्यवत और हैमवत के मनुष्य का एक बालाग्र होता है । वे आठ मिलने पर भरत ऐरावत और विदेह के मनुष्य का एक केशाग्र होता है । वे आठ बालान मिलने पर एक लिक्षा होती है। आठ लिक्षा संहत होने पर एक यूका होती है। आठ यूका का एक यवमध्य होता है । आठ यवमध्य का एक उत्सेधांगुल होता है । इस उत्सेधांगुल से नारकी