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तृतीयोऽध्यायः
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प्रमाणमस्येति तत्प्रमाणम् । तद्यथा - मणिरत्नदीप्तिर्यावत्क्षेत्रमुपरि व्याप्नोति तावत्प्रमाणं सुवर्णकूटं मूल्यमिति । श्रश्वस्य च यावानुच्छ्रायस्तावत्प्रमाणं सुवर्णकूटं मूल्यम् । अथवा यावता रत्नस्वामिन: परितोषस्तावद्रत्नमूल्यं स्यादिति । एवमन्येषामपि द्रव्याणां योज्यम् । लोकोत्तरं प्रमाणं चतुर्धा - द्रव्यक्षेत्रकालभावभेदात् । तत्र द्रव्यप्रमाणं जघन्यमध्यमोत्कृष्टमेकपरमाणुद्वित्रिचतुरादिप्रदेशात्मकमामहास्कन्धात् । क्षेत्रप्रमाणं जघन्यमध्यमोत्कृष्ट मेकाकाशप्रदेशद्वित्रिचतुरादिप्रदेश निष्पन्नमासर्वलोकात् । काल प्रमाणं जघन्यमध्यमोत्कृष्ट मेकद्वित्रिचतुरादिसमय निष्पन्नमा अनन्तकालात् । भावप्रमाणमुपयोगः साकारानाकारभेदः । स जघन्यः सूक्ष्मनिगोतस्य । मध्यमोऽन्यजीवानाम् । उत्कृष्टस्तु केवलिनो भवति । तत्र
आदि का प्रकाश इतना ऊंचा फैलता है इत्यादि गुण विशेष द्वारा उन उन द्रव्यों का मूल्य करना वह तत्प्रमाण नाम का माप विशेष है । इसीको बताते हैं— मणिरत्न की चमक- कान्ति जितने क्षेत्र तक ऊपर फैलती है उतना माप वाला सुवर्णकूट - मूल्य उक्त रत्न का है ऐसा जो माप है वह तत् प्रमाण है । अश्व का जितना उत्सेध है उतना सुवर्ण कूट उसका मूल्य है । अथवा रत्नों के स्वामी को जितने मूल्य से संतोष होवे वह उस रत्न का मूल्य है । इसीतरह अन्य पदार्थों के नाप में लगा लेना चाहिये ।
लोकोत्तर प्रमाण चार प्रकार का है— द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रव्य प्रमाण तीन तरह का है, जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । एक परमाणु जघन्य द्रव्य प्रमाण है, दो, तीन आदि परमाणु से लेकर महा स्कन्ध के पहले पहले तक मध्यम द्रव्य प्रमाण है, महा स्कन्ध उत्कृष्ट द्रव्य प्रमाण है । क्षेत्र प्रमाण के तीन भेद जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । आकाश का एक प्रदेश जघन्य क्षेत्र है । दो प्रदेश तीन प्रदेश आदि से लेकर सर्व लोक के पहले पहले तक मध्यम क्षेत्र प्रमाण है । सर्व लोक उत्कृष्ट क्षेत्र प्रमाण है । काल प्रमाण के तीन भेद - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जघन्य काल एक समय का । दो समय तीन समय आदि से निष्पन्न काल से लेकर अनंत काल के पहले पहले तक का काल मध्यम काल प्रमाण है । उत्कृष्ट काल प्रमाण अनन्त काल स्वरूप है । उपयोग को भाव प्रमाण कहते हैं । उसके दो भेद हैं साकार उपयोग भाव प्रमाण और अनाकार उपयोग भाव प्रमाण । इस उपयोग रूप भाव प्रमाण के पुनः तीन भेद हैंजघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट । जघन्य उपयोग भाव प्रमाण सूक्ष्म निगोदी जीव के होता है, मध्यम उपयोग भाव प्रमाण सूक्ष्म निगोदिया जीवों को छोड़कर तथा केवलज्ञानी को छोड़कर शेष जीवों के होता है । उत्कृष्ट उपयोग भाव प्रमाण केवलज्ञानी
होता है ।