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________________ १८४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती तावदुच्यते-प्रमाणं द्विविधं-लौकिकं लोकोत्तरं चेति । तत्र लौकिकं षोढा प्रविभज्यते-मानमुन्मानमवमानं गणनामानं प्रतिमानं तत्प्रमाणं चेति । तत्र मानं द्वधा-रसमानं बीजमानं चेति । घृतादिद्रव्यपरिच्छेदकं षोडशिकादि रसमानम् । कुडवादिकं बीजमानम् । कुष्टतगरादि भाण्डं येनोत्क्षिप्य मीयते तदुन्मानम् । निवर्तनादिविभागेन क्षेत्रं येनावगाह्य मीयते तदवमानं दण्डादि । एकद्वित्रिचतुरादिगणितमात्राद्गणनामानम् । पूर्वमानापेक्षं मानं प्रतिमानम्-प्रतिमल्लवत् । चत्वारि महिधिकातृणफलानि श्वेतसर्षप एकः । षोडशसर्षपफलानि धान्यमाषफलमेकम् । द्वे धान्यमाषफले गुजाफलमेकम् । द्वे गुजाफले रूप्यमाष एकः । षोडशरूप्यमाषका धरणमेकम् । अर्धतृतीयानि धरणानि सुवर्णः स च कंसः । चत्वारः कंसा पलम् । पलशतं तुला। अर्धकंसस्त्रीणि च पलानि कुडवः । चतु:कुडवः प्रस्थः । चतुःप्रस्थमाढकम् । चतुराढको द्रोणः । षोडशद्रोणा खारी। विंशतिखार्यो वाह इत्येवमादिमागधकप्रमाणं प्रतिमानमित्युच्यते। मणिजात्यश्वादेव्यस्य दीप्तय च्छायगुणविशेषादिमूल्यपरिमाणकरणे उत्तर-अब इस पल्य को बतलाने के लिये प्रमाण-माप की विधि का निर्णय करते हैं, क्योंकि माप का निर्णय होने से पल्य स्वतः जाना जायगा । प्रमाण [ माप या नाप ] दो प्रकार का है, लौकिक प्रमाण और लोकोत्तर प्रमाण । उनमें लौकिक प्रमाण छह तरह का है । मान, उन्मान, अवमान, गणना मान, प्रतिमान और तत्प्रमाण । उनमें मान के दो भेद हैं-रसमान और बीजमान । घी आदि तरल पदार्थों के नापने के तोल षोडशिकादि रसमान कहलाता है और कुडव [ पाव ] आदि माप बीजमान है । कष्ट तगर आदि भाण्ड को डालकर जो नापा जाता है वह उन्मान है। निवर्तनादि विभाग से जिसके द्वारा खेत-(जमीन) अगवाह करके नापी जाती है वह दण्डा आदिक अवमान कहलाता है । एक, दो, तीन, चार आदि गणनामात्र गणनामान है। पूर्व के माप की अपेक्षा जो माप होता है वह प्रतिमान है प्रतिमल्ल के समान इसका विस्तृत कथन करते हैं-चार महिधि तृण के फलों का [ मेंहदी के बीजों का ] एक सफेद सरसों होती है । सोलह सरसों प्रमाण [ तोलवाला ] एक उड़द धान्य होता है । दो उड़दों की एक गुजा, दो गुजा का एक रुप्यमाष, सोलह रुप्यमाषों का एक धरण ढाई धरण का एक सुवर्ण होता है इसे कंस भी कहते हैं। चार कंसों का एक पल, सौ पलों का एक तुला, आधा कंस और तीन पलों का एक कुडव होता है, चार कुडवों का एक प्रस्थ [ सेर-किलो ] चार प्रस्थों का एक आढक, चार आढकों का एक द्रोण, सोलह द्रोणों का एक खारी, बीस खारी का एक वाह इत्यादि जो मागधक प्रमाण है वह प्रतिमान कहलाता है। मणि-रत्न, जाति, अश्व आदि जो विशिष्ट पदार्थ हैं, उन उनकी दीप्ति का ऊंचापना अर्थात् अमुक रत्न मणि
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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