________________
१७२ ]
सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती निर्णयविशेषार्थमुक्तमपि भरतविष्कम्भं प्रकारान्तरेण पुनराह
भरतस्य विषकम्भो जम्बूद्वीपस्य नवतिशतभागः ॥३२॥ भरततुल्यविस्तारा नवत्यधिकशतपरिमाणा जम्बूद्वीपस्य भागा भवन्तीति नवत्यधिकशतेन जम्बूद्वीपविस्तारस्य योजनशतसहस्रस्य भागे हृते यो लभ्यते एको भागः पूर्वोक्तपरिमाण स भरतस्य विष्कम्भ इति प्रतिपत्तव्यम् । स च षड्विंशपञ्चयोजनशतानि षट्चैकानविंशतिभागा योजनस्येत्यत्रैव सूत्रे वक्तव्यं न पूर्वमिति चेन्न-यथेदं सूत्रमत्रोत्तरार्थं तथा तत्रोत्तरार्थं कृतमिति नैकसूत्री करणम् । तदेवमुक्तो जम्बूद्वीप: स्ववेदिकापरिवृतयोजनलक्षद्वयविष्कम्भलवणोदेन वलयाकृतिना परिक्षिप्तः । स च धातकीखण्डेन चतुर्योजनलक्षविस्तारेण परिवेष्टित इति सामर्थ्यादवगम्यते । वर्षादिस्तु तत्र किंप्रमाणो मीयत इति तत्प्रति पत्त्यर्थमाह
भरत का विष्कंभ प्रकारान्तर से निर्णय विशेष के लिये पुनः कहते हैंस्त्रार्थ-भरत क्षेत्र का विस्तार जम्बूद्वीप के एक सौ नब्बेवां भाग प्रमाण है।
जम्बूद्वीप का विस्तार एक लाख योजन प्रमाण है, उसमें एक सौ नब्बे का भाग दो तो जो भाग आयेगा वह भरत के समान है, भरत क्षेत्र का विष्कंभ इतने प्रमाण वाला जानना चाहिये ।
शंका-पांच सौ छब्बीस योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में छह भाग प्रमाण है ऐसा पहले सूत्र में जो कहा गया है उसको इस सूत्र में [ ३२ वें में ] कहना चाहिये, पहले नहीं ?
समाधान- इस तरह नहीं कहना, जैसे यहां यह सूत्र उत्तरार्थ है वैसे वहां उत्तरार्थ है अतः एक सूत्र नहीं बनाया है।
इसप्रकार जम्बूद्वीप का कथन किया। यह द्वीप अपनी वेदिका से वेष्टित है तथा दो लाख योजन वाले गोल लवण समुद्र से वेष्टित है। वह लवणोदधि चार लाख योजन प्रमाण वाले धातकी खण्ड से परिवृत है ऐसा सामर्थ्य से जाना जाता है।
उस धातकीखण्ड में क्षेत्रादि किस प्रमाण से नापते हैं इस बातको जानने के लिये सूत्र कहते हैं