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तृतीयोऽध्यायः
[ १७१ स्तुल्याः । राम्यका हारिवर्षकैस्तुल्याः। औत्तरकुरवका दैवकुरवकैस्तुल्या ज्ञेयाः । विद्याधराणां पूर्वकोटिरायुस्तावदवसर्पति यावद्विशत्यधिकं वर्षशतं भवति । प्रकृष्टात्पञ्चविंशत्यधिकपञ्चशतचापोत्सेधात्तावदवसर्पणं यावत्सप्तहस्तवपुषो भवन्ति । न ततो हीयते चायुरुत्सेधश्चेत्ययमत्र विशेषो द्रष्टव्यः । विदेहेषु किंस्थितिका लोका इत्याह
विदेहेषु सङ्घय यकालाः ॥३१॥ सङ्घय यो गणनाविषयः कालो जीवितपरिमाणं येषां नराणां ते सङ्ख्ययकालाः । सर्वेषु विदेहेषु कालः सुषमदुःषमान्तोपमः सदाऽवस्थितः । मनुष्याश्च पञ्चविंशत्यधिकपञ्चधनुःशतोत्सेधा नित्याहाराः । उत्कर्षेणैकपूर्वकोटिस्थितिका जघन्येनान्तर्मुहूर्तायुष इत्यत्र व्याख्येयम्
पुव्वस्स दु परिमाणं सदरिंखलु कोडिसदसहस्साई। छप्पण्णं च सहस्सा बोद्धव्वा वासकोडीणं ।।
. (७०५६००००००००००)
वतक के मनुष्यों के समान होते हैं । राम्यक मनुष्य हारिवर्षक मनुष्यों के समान होते हैं। उत्तरकुरु के मनुष्य देवकुरु के मनुष्य के समान हैं। विद्याधर मनुष्यों की आय उत्कृष्ट तो पूर्व कोटी प्रमाण है इससे तब तक घटती आयु है जबतक कि एक सौ बीस वर्ष प्रमाण तक होती है। उन विद्याधरों के शरीर की ऊंचाई उत्कृष्ट से पांच सौ पच्चीस धनुष की है और घटती हुई सात हाथ की है। इस आयु और ऊंचाई से कम आय ऊंचाई विद्याधरों के नहीं होती। अभिप्राय यह हुआ कि विद्याधर मनुष्यों की आयु एक सौ बीस वर्ष की तो कम से कम है इससे कम आयु नहीं होती तथा ऊंचाई कम से कम सात हाथ को होती है इससे कम नहीं होती।।
विदेहों में कितनी आयु वाले मनुष्य हैं यह बतलाते हैं
सूत्रार्थ-विदेहों में संख्येय वर्ष वाले मनुष्य होते हैं। संख्येय गणना विषयक काल है, जीने का प्रमाण जिन मनुष्यों का संख्येय काल है वे संख्येयकालाः हैं। सर्व विदेहों में सुषम दुःषमा काल सदा अवस्थित है । मनुष्य पाँच सौ पच्चीस धनुष ऊंचे हैं और नित्याहारी हैं, उत्कृष्ट से पूर्वकोटी आयु वाले हैं और जघन्य से अन्तम हत आयु वाले हैं। यहां पूर्व कोटी का प्रमाण बतलाते हैं-एक पूर्व कोटी का प्रमाण सत्तर लाख करोड़ और छप्पन हजार करोड़ वर्ष जानना ।। १ ।। ७०५६०००००००००० इतनी संख्या प्रमाण पूर्व कोटी का है।