________________
१७० ]
सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती
तथोत्तराः ॥३०॥ तेन प्रकारेण तथा । मेर्वपेक्षयोत्तरदिग्भागवर्तिन उत्तरा उच्यन्ते । यथैव दक्षिणा हैमवतकादयो व्याख्यातास्तथैवोत्तरा हैरण्यवतकादयो नरा विज्ञेयाः। हैरण्यवतका मनुष्या हैमवतकर्नरै
अढाई द्वीपों के शाश्वत भोगभूमि संबंधी विवरण
पांच देवकुरु | पांच उत्तरकुरु | पांच हरिवर्ष | पांच रम्यक क्षेत्र | पांच हैमवत पांच हैरण्यवत
उत्तम भोग
भूमि
उत्तम भोग | मध्यम भोग भूमि । भूमि
मध्यम भोग | जघन्य भोग
भूमि । भूमि
जघन्य भोग __ भूमि
।
जीवों की आयु | जीवों की आयु | जीवों की आयु | जीवों की आयु | जीवों की आयु | जीवों की प्रायु ३ पल्य ३ पल्य २ पल्य
२ पल्य १पल्य १पल्य
ऊंचाई ३ कोस
ऊंचाई ३ कोस
ऊंचाई २ कोस
ऊंचाई २ कोस
ऊंचाई १ कोस
ऊंचाई १ कोस
मनष्यों का वर्ण | मनुष्यों के शरीर| मनुष्यों के शरीर मनुष्यों के शरीर | मनुष्यों के शरीर | मनुष्यों के सुवर्ण सम | का वर्ण
का वर्ण का वर्ण
का वर्ण शरीर का वर्ण सुवर्ण सम शुक्ल शुक्ल
नील नील
भोजन काल ३ दिन बाद
भोजन काल भोजन काल भोजन काल भोजन काल ३ दिन बाद | २ दिन बाद | २ दिन बाद । १ दिन बाद
| भोजन काल
१ दिन बाद
उत्तर भाग में कौन स्थिति वाले जीव हैं यह बतलाते हैंसूत्रार्थ- उत्तर में उसी प्रकार स्थिति वाले जीव होते हैं।
"तेन प्रकारेण तथा" यह तथा शब्द की निष्पत्ति है । मेरु की अपेक्षा उत्तर दिशा में होने वाले "उत्तरा" कहलाते हैं । जैसे दक्षिण के हैमवतक आदि का व्याख्यान किया है वैसे ही उत्तर के हैरण्यवतक आदि मनुष्य होते हैं। हैरण्यवतक मनुष्य हैम