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________________ ( १२ ) पांचवां अध्याय - पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इस प्रकार पांच अजीव - जड़ ( अचेतन) द्रव्यों का इस अध्याय में वर्णन है । जो अपनी अपनी पर्यायों को प्राप्त करता है वह द्रव्य कहलाता है । परवादी द्रव्यत्व के समवाय से द्रव्य की सिद्धि करते हैं उस मत का टीकाकार ने निरसन किया है तथा दिशा, मन आदि को द्रव्य मानने का खण्डन किया है । ये द्रव्य नित्य और अवस्थित हैं अर्थात् अनादि निधन हैं और अपनी छह प्रमाण जाति संख्या को कभी नहीं छोड़ते, द्रव्यों की संख्या सदा छह ही रहती है घटती बढ़ती नहीं है इस बात को अच्छी तरह समझाया गया है । धर्म, अधर्म और आकाश ये एक एक द्रव्य हैं । जीव द्रव्य अनंत हैं पुद्गल उनसे भी अनंतगुणे अनन्त हैं । काल द्रव्य असंख्यात हैं । धर्म, अधर्म और एक जीव के असंख्यात प्रदेश होते हैं । आकाश में लोकाकाश में असंख्यात प्रदेश हैं और अलोकाकाश में अनंत प्रदेश हैं । पुद्गल में जो अणु है उसमें एक प्रदेश है, स्कन्ध में दो से लेकर संख्यात असंख्यात अनन्त परमाणु पाये जाते हैं । काल द्रव्य एक प्रदेशी है । एक परमाणु जितनी जगह को रोकता है उसका नाम प्रदेश है । काल द्रव्य को छोड़ कर शेष द्रव्यों में अनेक प्रदेश पाये जाते हैं अतः इन पांच द्रव्यों को अस्तिकायबहुप्रदेश कहते हैं । इन द्रव्यों का अवस्थान लोकाकाश में है । धर्म तथा अधर्म द्रव्य सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं । संसारी जीव अपने अपने शरीर प्रमाण रहते हैं, छोटे बड़े शरीरों में अवस्थान जीव के प्रदेशों में संकोच तथा विस्तार स्वभाव होने के कारण होता है । धर्म आदि द्रव्यों का गतिरूप स्थितिरूप आदि उपकार है अणु और स्कन्धरूप पुद्गल द्रव्य के प्रमुख भेद हैं । शब्द, बन्ध, सौक्ष्म्य छाया आदि पुद्गल की विभाव व्यञ्जन पर्यायें हैं । अणु की उत्पत्ति स्कन्ध भेद से होती है । स्कन्ध दो आदि अणुओं के विशिष्ट बन्ध होने पर उत्पन्न होता है । उस बन्ध का कारण स्निग्ध और रूक्ष गुण है सत् है और सत् उत्पाद व्यय तथा ध्रौव्य युक्त होता है । अथवा द्रव्य गुण और पर्याय वाला होता है । 'गुणपर्ययवद् द्रव्यम्' इस सूत्र की टीका में भास्करनन्दी ने तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ को 'अर्हत् प्रवचन हृदय' नाम से गौरवान्वित किया है । द्रव्य का लक्षण
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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