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________________ सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ शैश्वर्यवजितस्थानायुर्वीर्यपरिवारभोगादिकमुच्यते । तस्मिन्समाने भवाः सामानिका: बाह्या मध्याभ्यन्तरा चेति तिस्रः परिषदः परिवारदेवीसभा इत्यर्थः । सामानिकाश्च परिषदश्च सामानिकपरिषदः । सहताभिर्वर्तन्ते ससामानिकपरिषत्काः । प्रधानभूतपद्मस्य परिवारभूतपद्मेषु सामानिकाः परिषदश्च निवसन्ति । तत्र हिमवन्महाहिमवन्निषधनिवासिन्यो दिक्कुमार्यः सौधर्मप्रतिबद्धाः । नीलरुक्मिशिखरनिवासिन्य ईशानस्य । एवं धातकीखण्डपुष्करार्धयोरपि हिमवदादिह्रदपुष्करेषु श्रीप्रभृतयो देवता व्याख्येयाः । अथोक्तक्षेत्राणां मध्यगामिन्यो महानद्यः का इत्याह १६० ] गङ्गा सिन्धु रोहिद्रोहितास्याहरिद्धरिकान्ताशीता शीतोदानारीनरकान्तासुवर्णकूलारूप्यकूला रक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥२०॥ गङ्गा च सिन्धुश्च रोहिच्च रोहितास्या च हरिच्च हरिकान्ता च शीता च शीतोदा च नारी च नरकान्ता च सुवर्णकूला च रूप्यकूला च रक्ता च रक्तोदा च ताः । इतरेतरयोगे द्वन्द्वः । ता एता 1 आयुवाली हैं । आज्ञा और ऐश्वर्य को छोड़कर अन्य जो स्थान आयु, वीर्य, परिवार, भोग आदिक जिनके इन्द्र समान हैं वे सामानिक देव कहलाते हैं । समान शब्द होने से अर्थ में इकण् प्रत्यय आकर सामानिक बना है । परिषत् तीन प्रकार की होती है बाह्य, मध्य और अभ्यन्तर । परिषत् में रहने वाले देव परिषत्क कहलाते हैं । ये देवियां सामानिक और परिषत्क देवों के साथ रहती हैं । मुख्य कमल पर देवी और उस कमल के परिवार भूत कमलों पर सामानिक तथा परिषत्क देव निवास करते हैं । उनमें हिमवन, महाहिमवन् और निषध संबंधी सरोवरों के कमलों पर रहने वाली श्री आदि तीन दिक्कुमारी देवियां सौधर्म इन्द्र की आज्ञानुवर्तनी हैं । और नील, रुक्मि तथा शिखरी पर्वत संबंधी सरोवरों के कमलों पर रहने वाली कीर्ति आदि तीन दिक् कुमारी देवियां ईशान इन्द्र की आज्ञानुवर्त्तनी हैं । जैसे जम्बूद्वीप के कुलाचल संबंधी ये देवियां हैं वैसे ही धातकी खण्ड और पुष्करार्ध संबंधी हिमवन आदि के सरोवर संबंधी कमलों पर भी श्री आदि देवियां हैं । प्रश्न - उक्त भरतादि क्षेत्रों के मध्य में होनेवाली महानदियां कौनसी हैं ? उत्तर- अब इसी को बताते हैं सूत्रार्थ - गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित् हरिकांता, शीता, शीतोदा, नारी नरकान्ता, सुवर्णकूला, रुप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा ये नादियां उन भरतादि क्षेत्रों के मध्य में बहती हैं ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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