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________________ तृतीयोऽध्यायः [ १६१ श्चतुर्दश सरितो नद्यो न वाप्यः । तेषां भरतादिक्षेत्राणां मध्यं तन्मध्यं तन्मध्येन वा गच्छन्तीति तन्मध्यगाः । इत्यनेन नान्यथा गतिर्गङ्गासिन्धुप्रभृतीनां सरितामस्तीत्या वेदितं भवति । सर्वासामेकत्र क्षेत्रे प्रसङ्गनिवृत्त्यर्थं दिग्विशेषप्रतिपत्त्यर्थं चाह द्वयोर्द्व योः पूर्वाः पूर्वगाः ॥२१॥ पूर्वसूत्रपाठक्रमेणैकस्मिन् क्षेत्रे द्वयोर्द्वयोः सरितोर्या. पूर्वाः सरितस्ताः पूर्वसमुद्रं गच्छन्तीति पूर्वगा एवेति कथ्यन्ते । इतरासां दिग्विभागप्रतिपत्त्यर्थमाह शेषास्त्वपरगाः ॥२२॥ द्वयोर्द्वयोः सरितोर्मध्ये याः पूर्वाः पूर्वगा उक्तास्ताभ्योऽन्या उत्तरोत्तराः सरितः शेषाः। तुः । पुनरर्थे । शेषाः पुनरपरं पश्चिमसमुद्र गच्छन्तीत्यपरगा इति निरूप्यन्ते । तत्र पद्महदप्रभवा पूर्वस्मा गंगा आदि पदों में द्वन्द्व समास है । ये चौदह नदियां हैं ये वापिका नहीं हैं। उन भरतादि क्षेत्रों के मध्य में जो जाती हैं वे तन्मध्यगा कही जाती हैं । गंगा सिंधु आदि नदियों का अन्यत्र या अन्य प्रकार से गमन नहीं होता इस बात को तन्मध्यगा शब्द से बतलाया है। सभी नदियां एक क्षेत्र में होने का प्रसंग आने पर उसको दूर करने के लिये उन नदियों के बहने की दिशा विशेष बतलाते हैं सूत्रार्थ-दो नदियों में से पूर्व पूर्व की नदी पूर्व समुद्रगामी है। सूत्र पाठ के क्रम से एक क्षेत्र में जो दो नदियां हैं उनमें पूर्व की नदी पूर्व समुद्र में जाती है, अतः पूर्वगा कहलाती है। इतर नदियों का दिशा विभाग कहते हैं सूत्रार्थ-शेष नदियां अपर समुद्र में जाती हैं । दो दो नदियों में से जो पूर्व पूर्व की नदी है वे पूर्वगा हैं और उनसे अन्य नदियां शेष कहलाती हैं । तु शब्द पुनः अर्थ में है । पुनः शेष नदियां अपर समुद्र में जाती हैं अतः “अपरगाः" कहलाती हैं । अब इन नदियों का निर्गम आदि बतलाते हैं-पद्म सरोवर में उत्पन्न हुई गंगा नदी उस
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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