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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती
तद्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च ॥१८।। ताभ्यां ह्रदपुष्कराभ्यां द्विगुणा द्विगुणास्तद्विगुण द्विगुणाः । अत्रायामादीनां द्विगुणत्वव्याप्तिज्ञापनार्थं द्विर्वचनं कृतम् । पद्मह्रदाद्विगुणायामविष्कम्भावगाहो महापद्मह्रदः । ततो द्विगुणायामविष्कम्भावगाहस्तिगिञ्छह्रदः । एवं पुष्करात्पुष्करान्तरायामादिद्विगुणत्वव्याप्तिर्योज्या । तथा ह्रदाः पुष्कराणि चेत्युभयत्र द्विवचने प्राप्ते यद्बहुवचनं कृतं तत्सामर्थ्यनोत्तरादक्षिणतुल्या इति वक्ष्यमाणसूत्रसम्बन्धात्पुण्डरीकह्रदतत्पुष्कराभ्यां महा पुण्डरीकह्रदतत्पुष्करयोरायामविष्कम्भावगाहैद्विगुणत्वम् । ताभ्यां च केसरिह्रदतत्पुष्करयोद्विगुणत्वं व्याख्यायते । तन्निवासिनीनां देवीनां संज्ञाजीवितपरिमाणपरिवारसंसूचनार्थमाह
सूत्रार्य-उक्त सरोवर तथा कमल से आगे के सरोवर और कमल दुगुणे दुगुणे विस्तार युक्त हैं।
उन ह्रद और पद्मों में आयामादि का दुगुणापना बतलाने के लिये द्विगुण शब्द को दो बार रखा है। पद्म ह्रद से दुगुणा आयाम, विष्कंभ और अवगाह वाला महापदम हद है, उससे दुगुणा आयाम, विष्कम्भ और अवगाह वाला तिगिञ्छ ह्रद है। इसीप्रकार कमल से कमल का आयाम आदि दुगुणा है ऐसी व्याप्ति कर लेना चाहिये । "इस सूत्र में ह्रदाः पुष्कराणि" ऐसा बहुवचन का प्रयोग किया, उससे तथा आगे छब्बीसवें "उत्तरा-दक्षिण तुल्याः " सूत्र से संबंध कर लेने पर पुण्डरीक ह्रद और उसके कमल से महापुण्डरीक ह्रद और उसके कमल का आयाम, विष्कम्भ तथा अवगाह दुगुणा है ऐसा ज्ञात हो जाता है । तथा उससे केसरि ह्रद और उसका कमल दुगुणा है यह भी ज्ञात होता है।
भावार्थ-पद्म ह्रद से महापद्म का आयाम आदि दुगुणा है, महापद्म से तिगिंछ का दुगुणा है, पुनः केसरी ह्रद का तो तिगिंछ जितना आयामादि है, उस केसरी से आधा आयामादि महापुण्डरीक ह्रद का है, और उससे आधा आयामादिक पुण्डरीक का है ऐसा जानना । कमल में भी यही क्रम है।
[ इन ह्रद आदि के आयामादि का चार्ट अगले पृष्ठ पर देखिये ]