SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयोऽध्यायः [ १५७ योविष्कम्भो विस्तारो यस्यासौ तदर्धविष्कम्भः । ह्रदो वज्रतलः पद्मनामा क्षुद्रहिमवतः पृष्ठे नित्यमवस्थितो वेदितव्यः । तदवगाहप्रतिपत्त्यर्थमाह दशयोजनावगाहः ॥१६॥ दशयोजनान्यवगाहोऽधःप्रवेशो निम्नता यस्यासौ दशयोजनावगाहः पद्मह्रदो ज्ञातव्यः । तन्मध्यवर्तिपुष्करप्रमाणावधारणार्थमाह तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥१७॥ प्रमाणयोजनपरिमाणसम्बन्धादभेदेन पुष्करमपि योजनशब्देनोच्यते । कथं तत्पद्म योजनपरिमाणं कथ्यते ? क्रोशायामपत्रत्वात्क्रोशद्वयविस्तारकणिकत्वाच्च योजनायामविष्कम्भं पुष्करम् । तच्च जलस्योपरितनभागात्क्रोशद्वयोत्सेधनालं द्विक्रोशबाहुल्यपत्रप्रचयं वेदितव्यम् । इतरहदपुष्करायामादिनिर्ज्ञानार्थमाह यह चौड़ाई दक्षिण उत्तर में है, इस पद्म सरोवर का तलभाग वज्रमय है, यह हिमवान पर्वत के पृष्ठ पर नित्य ही अवस्थित जानना चाहिये । अब इसका अवगाह-गहराई बताते हैं सूत्रार्थ-उसकी गहराई दश योजन की है । अवगाह, अधः प्रवेश और निम्नता ये एकार्थ वाची शब्द हैं, दस योजन का है अवगाह जिसका ऐसा यह पद्म सरोवर जानना चाहिये। उस पद्म सरोवर के मध्य के कमल का प्रमाण बतलाते हैंसूत्रार्थ-उस पद्म सरोवर के मध्य में एक योजन का कमल है। प्रमाण-माप योजन का होने से योजन शब्द द्वारा अभेदपने से कमल को कहा है। यह कमल एक योजन का किसप्रकार है सो बताते हैं-इस कमल के पत्र एक कोस आयाम वाले हैं और कणिका दो कोस की है अतः कुल घेरा एक योजन का हो जाता है। इसका नाल दण्ड जल के उपरितन भाग से दो कोस ऊंचा है, दो कोस बाहुल्य वाले पत्र समूह संयुक्त यह कमल है ऐसा जानना चाहिये। अन्य सरोवर तथा कमलों के आयामादि को कहते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy