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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती मणिविचित्रपार्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ।१३।। नानावर्णप्रभावादिगुणोपेतैर्मणिभिविचित्राणि कर्बुराणि पानि तटानि येषां ते मणिविचित्रपााः । उपर्य भामे मूलेऽधोभागे च शब्दान्मध्ये भागे च तुल्यः समानो विस्तारो विष्कम्भो येषां ते तुल्यविस्तारा हिमवदादयः कुलपर्वता बोद्धव्याः । तत्पृष्ठेषु ह्रदविशेषप्रतिपादनार्थमाह
पद्ममहापद्मतिगिञ्छकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीकाहदास्तेषामुपरि ॥१४॥
स्वमध्यवर्तिपद्मादियोगाधूदा अपि पद्मादिसंज्ञा रूढाः । ते च तेषां हिमवदादीनामुपरि मध्यदेशवर्तिनो यथाक्रमं वेदितव्याः । तत्र प्रथमह्रदपरिमारणमाह
प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्धविष्कम्भो ह्रदः ॥१५॥ प्रथमः सूत्रपाठापेक्षया आद्यः पद्मनामा ह्रदः। योजनानां सहस्र योजनसहस्रम् । तदेव पूर्वापरयोरायामो दैर्घ्यं यस्य सोऽयं योजनसहस्रायामः । तस्यायामस्याधु शतपञ्चकम् । तदेव दक्षिणोत्तर
उन पर्वतों का विस्तार विशेष का प्रतिपादन करते हैं
सूत्रार्थ-ये छहों कुलाचल अनेक मणियों से युक्त पार्श्व भागवाले हैं तथा इनका विस्तार ऊपर और मूल में समान है । नाना वर्ण वाले कान्तियुक्त रत्नों से चितकबरे हैं पार्श्व भाग जिनके ऐसे वे पर्वत हैं। इनका उपरि भाग और मूलभाग तथा मध्य भाग सर्व ही समान चौड़ा है ऐसे ये कुलाचल विशिष्ट आकार वाले जानने चाहिये ।
उन पर्वतों के ऊपर सरोवर होते हैं उनका प्रतिपादन करते हैं
सूत्रार्थ-उन कुलाचलों पर क्रमशः पद्म, महापद्म, तिगिञ्छ, केसरी महा पुण्डरीक और पुण्डरीक नाम वाले सरोवर हैं ।
___अपने मध्य में होने वाले पद्मों-( कमलों) से युक्त होने के कारण सरोवर भी पद्म आदि वाले रूढ हुए हैं । ये छह सरोवर उन हिमवान् आदि कुलाचलों के उपरिम मध्यभागों में अवस्थित जानने चाहिये ।
उनमें प्रथम सरोवर का परिमाण बतलाते हैंसूत्रार्थ-पहला सरोवर एक हजार योजन लंबा और पांच सौ योजन चौड़ा है ।
सूत्र पाठ की अपेक्षा प्रथम आदि का पद्म नामा सरोवर लेना, पूर्व पश्चिम में एक हजार योजन लंबा और उस लंबाई से आधा अर्थात् पांच सौ योजन चौड़ा है,