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________________ तृतीयोऽध्यायः [ १५५ हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥१२॥ हेम पीतवर्ण सुवर्णम् । अर्जुनः शुक्लो वर्णस्तद्योगाद्रजतमप्यर्जुनाख्यम् । तपनीयं रक्तवर्ण स्वर्णम् । वैडूर्य नीलवर्णो मणिविशेषः । रजतं शुक्लवर्णं प्रसिद्धम् । हेम पीतवर्णं काञ्चनम् । ते हिमवदादयः पर्वता यथासङ्खय हेमादिभिनिर्वृत्ताः पीतादिवर्णाः वेदितव्याः । पुनस्तद्विशेषं तद्विस्तारं च प्रतिपादयन्नाह जंबूद्वीपस्थ कुलाचलों का विवरणक्रम | वर्ण ऊंचाई योजन चौड़ाई योजन अवगाह योजन नाम हिमवान सुवर्णमय १०० महा यो. १०५२ २५ महा यो. महाहिमवान रजतमय | २०० महा यो. ४२१० ५० महा यो. निषध तप्तसुवर्ण ४०० महा यो. | १६८४२॥ १०० महा यो. नील वैडूर्य १६८४२१ १०० महा यो. | ४०० महा यो. | २०० महा यो. रुक्मि रजत ४२१०० ५० महा यो. शिखरी सुवर्ण १०० महा यो. १०५२१ २५ महा यो. विशेष-यह सब प्रमाण महा योजन से है । एक महा योजन चार हजार माईलों का होता है। अब इन पर्वतों के वर्गों का प्रतिपादन करते हैं सूत्रार्थ-वे छह कुलाचल क्रमशः सुवर्ण, चांदी, ताया सुवर्ण, वैडूर्य, चांदी और सुवर्ण सदृश वर्ण वाले हैं। हेम सुवर्ण को कहते हैं यह पीत वर्ण होता है। शुक्ल वर्ण को अर्जुन कहते हैं और उसके योग से चांदी को भी अर्जुन कहते हैं। लाल वर्ण के सुवर्ण को तपनीय कहते हैं, नील रंग के मणि को वैडूर्य कहते हैं, रजत और हेम क्रमशः चांदी और सुवर्ण वाचक प्रसिद्ध ही हैं। वे हिमवन आदि पर्वत क्रम से सूवर्ण आदि वर्ण वाले जानने चाहिये ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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