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________________ तृतीयोऽध्यायः [ १४३ कच्छ, सुकच्छ, महाकच्छ, कच्छक, कच्छकावर्त, लाङ्गलावर्त, पुष्कल, पुष्कलावर्ताख्याः । तेषां मध्ये राजधान्य:-क्षेमा, क्षेमपुरी, अरिष्टा, अरिष्टपुरी, खड्गा, मञ्जूषा, ओषधिः, पुण्डरीकिणी चेति नगर्यः। तत्र शीताया उदङ् नीलादवाक् चित्रकूटात्प्रत्यक् माल्यवत्समीपदेवारण्यात्प्राक्कच्छविजयः चित्रकूटसमायामः द्वसहस्र द्व च शते त्रयोदशयोजनानां केन चिद्विशेषेणोने प्राक्प्रत्यग्विस्तीर्णः । तस्य बहुमध्यदेशभागे विजया? रजताद्रिर्भरतविजयाधतुल्योच्छायावगाहविष्कम्भः कच्छविजयविष्कम्भसमायामः प्राक्प्रत्यगायतः । स चैवं कच्छविजयो विजयार्धन गङ्गासिन्धुभ्यां चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृताभ्यां नीलाद्विनिःसृताभ्यां शीतायां प्रविष्टाभ्यां विभक्तत्वात्षड्खण्डः। तत्र शीताया उदग्विजयादिपाग्गङ्गासिन्ध्वोर्बहुमध्यदेशभाविनी क्षेमा नाम राजधानी वेदितव्या । एवमितरे सप्तापि जनपदाः क्रमेण पूर्वदेशनिवेशिनो वेदितव्याः । लवणसमुद्रवेदिकायाः प्रत्यक् पुष्कलावत्याः प्राक् शीताया शीता महानदी में प्रविष्ट हो जाती है। इसप्रकार चार वक्षार और तीन विभंगा नदो इनके द्वारा विदेह के आठ भेद होते हैं अर्थात् आठ जनपद या देश हो जाते हैं उन देशों के नाम कच्छ, सुकच्छ, महाकच्छ, कच्छक, कच्छकावर्त, लांगलावत, पुष्कल और पुष्कलावर्त हैं। उन आठों देशों की आठ राजधानी नगरियां हैं उनके नाम क्षेमा, क्षेमपुरी, अरिष्टा, अरिष्टपुरी, खड्गा, मंजूषा, औषधि और पुडरीकिनी हैं। उनमें शीता के उत्तर नील से दक्षिण, चित्रकूट वक्षार से पश्चिम माल्यवान गजदंत के निकट देवारण्य के पूर्व में [ यहां पर देवारण्य शब्द असंबद्ध है, क्योंकि देवारण्य समुद्र निकट है न कि गजदंत के निकट ] पूर्वोक्त कच्छ नाम का देश है। यह चित्रकूट वक्षार के समान आयामवाला है और पूर्व पश्चिम में दो हजार दो सौ तथा कुछ कम तेरह योजन विस्तार वाला है। इसके मध्य भाग में विजयाध पर्वत्त है जो भरत क्षेत्र के विजयार्ध के समान ऊंचा गहरा और चौड़ा है तथा लंबा अपने कच्छ देश के विष्कंभ के बराबर है। इसकी यह लंबाई पूर्व पश्चिम में है। इसप्रकार यह कच्छ देश चौदह हजार परिवार नदियों से युक्त गंगा सिंधुनदी द्वारा और विजयाई द्वारा विभक्त छह खण्ड वाला हो गया है, कच्छ देश की ये गंगा आदि नदियां नील कुलाचल के कुण्डों से निकलती हैं और शीता महानदी में प्रविष्ट होती हैं । इस कच्छ देश में शीता नदी के उत्तर में विजयाध के अपाची में और गंगा सिंधु के बहुमध्य में क्षेमा नाम की नगरी है। इस कच्छ देश के समान ही शेष सात सुकच्छ आदि देश हैं। लवण समुद्र की वेदिका से पश्चिम में पुष्कलावती देश से पूर्व में शीता नदी से उत्तर में और नील कुलाचल से दक्षिण में देवारण्य नाम का वन है। यह वन शीता
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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