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________________ १४२ ] __ सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती शीतोदाया अपि निषधाभिधानह्रदपञ्चकं काञ्चनगिरिशतं च वेदितव्यम् । शीतया महानद्या पूर्वविदेहो द्विधा विभक्त-उत्तरो दक्षिणश्चेति । तत्रोत्तरभागश्चतुभिर्वक्षारपर्वतैस्तिसृभिविभङ्गनदीभिश्च विभक्तोऽष्टधाभिन्नोऽष्टाभिश्चक्रधरैरुपभोग्यः । तत्र चित्रकूट: पद्मकूटो नलिनकूट एकशीलश्चेति वक्षाराः। तेषामन्तरेषु ग्राहावती ह्रदावती पत्रावती चेति विभङ्गनद्यः । तत्र चत्वारोपि वक्षारा दक्षिणोत्तरकोटिभ्यां शीतानीलस्पशिनो नीलान्ते चतुर्योजनशतोत्सेधा योजनशतावगाहाः प्रदेशवृद्धया वर्धमानाः शीतानद्यन्ते पञ्चयोजनशतोत्सेधाः पञ्चविंशतियोजनशतावगाहा अश्वस्कन्धाकाराः सर्वत्र पञ्चयोजनशतविष्कम्भाः षोडशसहस्राणि पञ्चशतानि द्वानवत्यधिकानि योजनानां द्वौ चैकानविंशतिभागौ तेषामायामः । तिस्रोपि विभङ्गनद्यः स्वतुल्यनामकुण्डेभ्यो नीलाद्रिनितम्बनिवेशिभ्यो निर्गताः । प्रभवे द्विक्रोशाधिकद्वादशयोजनविस्तारा गव्यूत्यवगाहाः । मुखे पञ्चविंशतियोजनशतविष्कम्भा दशगव्यूत्यवगाहाः । प्रत्येकमष्टाविंशतिनदीसहस्रपरीताः शीतां प्रविशन्ति । एतैविभक्ता अष्टौ जनपदा: महानदी संबंधी पांच ह्रद और सौ कांचनगिरि हैं उसी प्रकार शीतोदा महानदी संबंधी भी निषधादि पांच ह्रद और सौ कांचनगिरि हैं। - शीता महानदी द्वारा पूर्व विदेह के दो विभाग हो गये हैं उत्तर और दक्षिण । उत्तर भाग चार वक्षार और तीन विभंगा नदियों द्वारा आठ भेद वाला हो गया है। ये आठों विदेह भेद आठ ही चक्रवर्ती द्वारा उपभोग्य हैं अर्थात् एक एक विदेह छह खण्ड युक्त हैं और उनमें चक्रवर्ती का साम्राज्य है। उक्त विदेहों में जो चार वक्षार कहे उनके नाम क्रमशः चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एक शैल है। उनके अन्तरालों में ग्राहावती, ह्रदावती और पंकावती नाम की पूर्वोक्त विभंगा नदियां हैं । वे जो चार वक्षार हैं वे दक्षिण और उत्तर के सिरे से क्रम से शीता नदी और नील कुलाचल का स्पर्श करते हैं । ये वक्षार नील के निकट चार सौ योजन ऊंचे हैं सौ योजन अवगाह वाले हैं फिर बढ़ते हुए शीता नदी के निकट पांच सौ योजन ऊंचे और एक सौ पच्चीस योजन अवगाह वाले हो जाते हैं । अश्वस्कंध के आकार वाले हैं, सर्वत्र पांच सौ योजन चौड़े हैं। इनको लंबाई सोलह हजार पांच सौ बानवे योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण है । उक्त तीनों विभंगा नदियाँ अपने अपने नामवाले नील कुलाचल संबंधी कुण्डों से निकली हैं । निकलते समय उनका विस्तार बारह योजन दो कोस प्रमाण है और गहराई एक कोस प्रमाण है। अन्त में शीता नदी में प्रविष्ट होते वक्त एक सौ पच्चीस योजन विस्तार युक्त है और गहराई दस कोस की है । प्रत्येक विभंगा नदी अट्ठावीस हजार परिवार नदियों से युक्त होकर
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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