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तृतीयोऽध्यायः
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न्नविंशति: (१४०११९) । एतेष्वनावृत देवस्य परिवारभूता व्यन्तरा वसन्ति । मेरोर्दक्षिणपूर्वस्यां दिशि मङ्गलावद्विजयात्प्रत्यङ निषेधादुदक्सौमनसो नाम वक्षारगिरिः । स च स्फटिक परिणामो गन्धमादने विष्कम्भायामोच्छ्रायावगाहसंस्थानैस्तुल्यः । मेरो: पश्चिम दक्षिणस्यां दिशि निषेधादुदक् पद्मवद्विज यात्प्राग्विद्युत्प्रभो नाम वक्षारगिरिस्तपनीयपरिणामो गन्धमादनसमवर्णनः । मेरोरपाक्सौमनसात्प्रत्यङ निषेधादुदक् विद्युत्प्रभात्प्राक् देवकुरवः । तेषां ज्याधनुरिंषुगणना उत्तरकुरुगणनया व्याख्याता । मेरोर्दक्षिणापरस्यां दिशि निषधादुदक् शीतोदायाः प्रत्यग्विद्युत्प्रभात्प्राक् मध्ये शुभा नाम शाल्मली सुदर्शनया जम्ब्वाख्यातवर्णना । तस्या उत्तरशाखायामर्हदायतनं पूर्वदक्षिणापरासु शाखासु प्रासादेषु गरुत्मान्वेणुदेवो वसति । तस्य परिवारः सर्वोऽनावृत देवपरिवारेण तुल्यः । निषधादुदगेकयोजनसहस्र तिर्यगतीत्य शीतोदाया महानद्या उभयोः पार्श्वयोश्चित्रकूटविचित्रकूटौ गिरी भवतः । शीताया इव
विशाल जम्बू वृक्ष के परिवार स्वरूप जम्बूवृक्ष और भी हैं उनकी संख्या एक लाख, चालीस हजार एक सौ उन्नीस हैं ( १४०११६ ) इन परिवार भूत वृक्षों पर अनावृत व्यन्तर देव के परिवार देव निवास करते हैं ।
मेरु के दक्षिण पूर्व दिशा में - आग्नेय में मंगला देश के पश्चिम में निषध कुलाचल से उत्तर में सौमनस नाम का वक्षारगिरि - गजदंत है, यह स्फटिक मणिमय है, इसकी चौड़ाई, लंबाई, ऊंचाई, अवगाह और संस्थान गन्धमादन गजदन्त के समान है । मेरु के पश्चिम दक्षिण में नैऋत में निषध कुलाचल से उत्तर में और पद्म देश के पूर्व में विद्युत्प्रभ नाम का वक्षारगिरि - गजदंत है, यह तप्त सुवर्णमय है । इसका वर्णन भी गन्धमादन के समान ही है । मेरु के अपाची दिशा में सौमनस गजदंत से पश्चिममें और निषध कुलाचल से उत्तर में तथा विद्युत्प्रभ गजदंत से पूर्व में देवकुरु क्षेत्र है, यह भी धनुषाकार है, इसकी ज्या धनुपृष्ठ और बाण उत्तर कुरु क्षेत्र के समान है ।
मेरु के दक्षिण ऊपर दिशा में, निषध से उत्तर शीतोदा महानदी के पश्चिम में और विद्युत्प्रभ गजदंत से पूर्व में शुभा नाम का शाल्मली वृक्ष है, इसका सर्व ही वर्णन जम्बूवृक्ष के समान है उस शाल्मली वृक्ष की उत्तर शाखा पर जिनालय है । और पूर्व, दक्षिण पश्चिम शाखाओं पर प्रासादों में गरुत् मान वेणुदेव निवास करता है । इसका सर्व ही परिवार अनावृत्त देव के परिवार के समान है ।
निषध कुलाचल से उत्तर में एक हजार योजन तिरछे जाकर शीतोदा महानदी के दोनों पावों में चित्रकूट और विचित्रकूट नाम के दो पर्वत हैं । जिस प्रकार शीता