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________________ १४४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ उदङ नीलादपाग्देवारण्यं नाम वनम् । तस्य द्व े सहस्र नवशतानि द्वाविंशानि योजनानां शीतामुखे विष्कम्भः । षोडशसहस्राणि पञ्चशतानि द्वानवत्यधिकानि योजनानां द्वौ चैकानविंशतिभागा वायामः । शीताया अपाङ निषधादुदग्वत्सविजयात्प्राग्लवणसमुद्रवेदिकायाः प्रत्यक् पूर्ववद्द वारण्यम् । शीताया दक्षिणतः पूर्वविदेहश्चतुभिर्वक्षारपर्वतैस्तिसृभिश्च विभङ्गनदीभिर्विभक्तोऽष्टधा भिन्नोऽष्टाभिश्चक्रधरैरुपभोग्यः । तत्र त्रिकूटो - वैश्रवणकूटोऽञ्जन श्रात्माञ्जनश्चेति वक्षाराः । तेषामन्तरेषु तप्त - जला अमलजला उन्मत्तजला चेति तिस्रो विभङ्गनद्यः । एतैर्विभक्ता श्रष्टौ जनपदाः । वत्सा, सुवत्सा, महावत्सा, वत्सावती, रम्या, रम्यका, रमणीया, मङ्गलावत्याख्यास्तेषां मध्ये राजधान्यः । सुसीमा, कुण्डलावती, अपराजिता, प्रभाकरी, प्रङ्गावती, पद्मावती, शुभा, रत्नसञ्चया चेति नगर्यः । तेषु जनपदेषु द्व े द्व े नद्यौ रक्ता रक्तोदासंज्ञे । एकैको विजयार्धः । तेषां सर्वेषां विष्कम्भायामादिवर्णना पूर्वव ेदितव्या । शीताया उत्तरतटे दक्षिणतटे च प्रतिजनपदं त्रीणि त्रीणि तीर्थानि — मागध वरदान नदी के निकट दो हजार नो सौ बावीस योजन चौड़ा है, सोलह हजार पांच सौ बानवे योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से दो भाग प्रमाण लम्बा है । शीता नदी से अपाची में निषध से उत्तर में वत्स देश के पूर्व में लवण समुद्र की वेदिका से पश्चिम में पहले के समान एक देवारण्य वन है । शीता नदी के दक्षिण तट पर दक्षिण संबंधी पूर्व विदेह चार वक्षार और तीन विभंगा नदियों द्वारा विभक्त हुआ आठ भेद वाला हो जाता है, ये आठों विदेह जनपद आठ ही चक्रवर्ती द्वारा उपभोग्य होते हैं । इनमें जो चार वक्षार हैं उनके नाम त्रिकूट वैश्रवणकूट, अंजन और आत्मांजन हैं । इनके अन्तरों में तीन विभंगा नदियों के नाम तप्तजला, अमल जला और उन्मत्तजला हैं । इन चार वक्षार और तीन विभंगा नदियों के कारण उक्त विदेह आठ जनपद वाला हो गया है । उन जनपदों के नाम वत्सा, सुवत्सा, महावत्सा, वत्सावती, रम्या, रम्यका, रमणीया और मंगलावती हैं । इन देशों की राजधानियां क्रम से सुसीमा, कुण्डलावती अपराजिता, प्रभाकरी, अंगावती, पद्मावती, शुभा और रत्नसंचया हैं । उक्त जनपदों में प्रत्येक में दो दो रक्ता रक्तोदा नाम की नदियां हैं, एक एक विजयार्ध हैं । उन सब देशादि का विष्कंभ आयाम आदि पूर्ववत् जानना चाहिये । शीता नदी के उत्तर तट पर और दक्षिण तट पर प्रत्येक जनपद संबंधी तीन तीन तोर्थ हैं उन सबके एकसे नाम मागध, वरदान और प्रभास हैं । ये तीर्थ पूर्व विदेह
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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