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________________ तृतीयोऽध्यायः [ १३३ इति मर्यादावचनाद्वेदितव्याः । चशब्दः पूर्वोक्तदुःखहेतुसमुच्चयार्थः । श्रन्यथा पूर्वसूत्रस्येदं सूत्रमुपरिष्टभूमि बाधकं स्यादित्यर्थः । का पुनस्तत्र नारकाणां परा स्थितिरित्याह तेष्वेकत्रिसप्त दश सप्तदश द्वाविंशतित्रयस्त्रित्सागरोपमासत्वानां परा स्थितिः || ६ || तेषु नरकेषु एकं च त्रीणि च सप्त च दश च सप्तदश च द्वाविंशतिश्च त्रयस्त्रिशच्च । तानि सागरोपमाणि यस्याः स्थितेः सा तथोक्ता । परोत्कृष्टा स्थितिरायुःपरिमाणलक्षणा भूमिसङ्ख्याक्रमेण यथासङ्ख्य ं सत्त्वानां नारकप्राणिनां वेदितव्या । रत्नप्रभायामेकं सागरोपमं परा स्थितिः । शर्कराप्रभायां त्रीणि । वालुकाप्रभायां सप्त । पङ्गप्रभायां दश । धूमप्रभायां सप्तदश । तमः प्रभायां द्वाविंशतिः । महातमः प्रभायां त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणीति । उक्त अधोलोकः । इदानीं तिर्यग्लोको वक्तव्यः । तत्र द्वीपसमुद्राणां तिर्यगवस्थानात्तिर्यग्लोकव्यपदेश इति कृत्वा तेषां प्रतिपादनं क्रियते— फिर यह अर्थ होता कि पहले के तीन नरकों में असुर द्वारा प्रदत्त दुःख है और शेष में परस्पर उदीरित दुःख है । उन नरकों में नारकी जीवों की उत्कृष्ट स्थिति - आयु कितनी है ऐसा पूछने पर अग्रिम सूत्र कहते हैं— सूत्रार्थ - उन नरकों में नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयु क्रमश: एक सागर, तीन सागर, सात सागर, दस सागर, सतरह सागर, बावीस सागर और तैंतीस सागर प्रमाण है । एक आदि पदों में प्रथम ही द्वन्द्व समास है और पुनः बहुब्रीहि समास है । भूमियों की संख्या के क्रम से नारकी जीवों की उत्कृष्ट आयु जाननी चाहिये, रत्नप्रभा में एक सागरोपम उत्कृष्ट स्थिति है । शर्कराप्रभा में तीन सांगर, वालुकाप्रभा में सात सागर, पंकप्रभा में दस सागर, धूमप्रभा में सतरह सागर, तमः प्रभा में बावीस सागर और महात्मः प्रभा में तैंतीस सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति - आयु है । इसप्रकार अधोलोक का वर्णन पूर्ण हुआ । [ अधोलोक संबंधी सात पृथिवी आदि का दर्शक चार्ट अगले पृष्ठ पर देखें ]
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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