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________________ तृतीयोऽध्यायः [ १३१ तत्र रत्नप्रभायां जघन्या कापोता नारकाणाम् । शर्कराप्रभायां मध्यमा कापोता । वालुकायां द्वे लेश्ये- उत्कृष्टा कापोता उपरिष्टे भागे, अधोभागे तु जघन्या नीला । पङ्कप्रभायां नीला मध्यमा । धूमप्रभायामुपरि नीला उत्कृष्टा, अधः कृष्णा जघन्या । तमः प्रभायां कृष्णा मध्यमा । तमस्तमःप्रभायां कृष्णा उत्कृष्टा । देहस्य स्पर्शादिपरिणतिः परिणामः । देहोऽपि हुण्डसंस्थानोऽतिबीभत्सः । नारकाणां देहस्योत्सेधः प्रथमायां भूमौ सप्तधनूंषि त्रयो हस्ताः षट्चांगुलयः । ततोऽधोऽधो द्विगुणो द्विगुण उत्सेधः । शीतोष्णजनितं दुःखं वेदना | शुभं करिष्याम इत्यशुभस्यैवासिवास्यादिरूप स्वदेहस्य विकरणं विक्रिया । त एते लेश्यादयो भावास्तिर्यगाद्यपेक्षयाऽतिशयेनाऽधोऽधोऽशुभा नारकाणां वेदितव्याः । किं शीतोष्णजनितदुःखा एवं नारका उतान्यथापीत्यत श्राह - 1 पंकप्रभा में मध्यम नील लेश्या है । धूमप्रभा के ऊपर भाग में उत्कृष्ट नील लेश्या है और अधोभाग में जघन्य कृष्ण लेश्या है । तमःप्रभा में मध्यम कृष्ण लेश्या है । तमस्तमप्रभा में उत्कृष्ट कृष्ण लेश्या है । शरीर के स्पर्शादि की परिणति को परिणाम कहते हैं । नारकी का शरीर भी हुण्डक संस्थान वाला अति घिनावना होता है । उनके शरीरों की ऊंचाई पहले नरक में सात धनुष तीन हाथ और छह अंगुल प्रमाण है । दूसरे आदि नरकों में नीचे नीचे उंचाई दुगुणी दुगुणी होती गई है । शीत और उष्ण के दुःख को वेदना कहते हैं । वे नारकी जीव हम शुभ को करेंगे ऐसा विचारते हैं किन्तु अशुभ ही तलवार, वसूला आदि स्वरूप शरीर की विक्रिया होती है । नारकियों में अशुभतर लेश्या आदि है ऐसा कहा है वह तिर्यंच गति आदि की अपेक्षा समझना, अर्थात् तिर्यंच गति में जीवों के जितनी अशुभ लेश्या आदिक हैं उनसे अधिक अशुभ लेश्यादि प्रथम नरक में हैं, उससे अधिक अशुभ लेश्यादिक दूसरे नरक में हैं, इसप्रकार नीचे नीचे अतिशयपने से लेश्या, परिणाम वेदना आदि अशुभतर अशुभतर होते गये हैं । इन नारकियों के शीत उष्ण जनित दुःख ही होता है या अन्य प्रकार से भी दुःख होता है ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं—
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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