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________________ तृतीयोऽध्यायः [ १२९ तासु त्रिंशत्पञ्चविंशतिपञ्चदशदशत्रिपञ्चोनेकनरकशत ___ सहस्राणि पञ्च चैव यथाक्रमम् ॥२॥ तासु भूमिष्वित्यर्थः । सतसहस्रशब्दो लक्षसङ्ख्यावाची । नरकाणां शतसहस्राणि नरकशतसहस्राणि । नरकशतसहस्रशब्दस्त्रिशदादिभि सङ्ख्याशब्दैः प्रत्येकमभिसम्बध्यते । ततो रत्नप्रभायां त्रिंशन्नरकलक्षाणि । शर्कराप्रभायां पञ्चविंशतिः । वालुकाप्रभायां पञ्चदश । पङ्कप्रभायां दश । धूमप्रभायां त्रीणि। तमःप्रभायां पञ्चोनैकं नरकशतसहस्रम् । महातमःप्रभायां पञ्चैव नरकाणीति यथाक्रमवचनादवगम्यते । रत्नप्रभायां त्रयोदश नरकप्रस्ताराः। ततोऽध आसप्तम्या द्वाभ्यां द्वाभ्यां हीना नरकप्रस्ताराः । अथ तन्निवासिनो नारकाः कथंभूता भवन्तीत्याह सूत्रार्थ-"तासु" पद भूमियों का सूचक है। शत सहस्र शब्द लाख संख्यावाची है। नरक शतसहस्र का तत्पुरुष समास करके पुनः त्रिंशत आदि संख्यावाची शब्दों के साथ प्रत्येक का संबंध जोड़ना चाहिये । इससे फलितार्थ होता है कि रत्नप्रभा में तीस लाख नरक बिल हैं । शर्कराप्रभा में पच्चीस लाख, वालुकाप्रभा में पन्द्रह लाख, पंकप्रभा में दस लाख, धूमप्रभा में तीन लाख, तमःप्रभा में पांच कम एक लाख और महातमःप्रभा में पांच नरक बिल हैं । इसतरह सूत्रोक्त यथाक्रमम् शब्द से जाना जाता है। रत्नप्रभा में तेरह प्रस्तार [ पाथडे ] हैं, उसके नीचे सातवीं भूमि तक दो दो प्रस्तार कम करना। भावार्थ-प्रथम नरक में तेरह प्रस्तार, दूसरे में ग्यारह, तीसरे में नौ, चौथे में सात, पांचवें में पांच, छठे में तीन और सातवीं भूमि में एक ही प्रस्तार है । ये प्रस्तार या पाथडे जैसे पृथिवी में मिट्टी आदि के “परत" जमे रहते हैं वैसे हैं । इसप्रकार अधोलोक में सात भूमियां हैं एक एक भूमि में तेरह, ग्यारह आदि प्रस्तार हैं, एक एक प्रस्तार में तीस लाख, पच्चीस लाख आदि नरक बिल हैं और उन नरक बिलों में एक एक में संख्यातीत नारकी जीव अपने पाप कर्म का कटुक फल भोगते हैं। उक्त नरक बिलों में रहने वाले नारकी जीव किस प्रकार के होते हैं ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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