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तृतीयोऽध्यायः
[ १२७ पञ्चचतुर्योजनबाहुल्यास्ततः क्रमहानौ सत्यां मोक्षपृथिवीपर्यन्ते तिर्यक्पञ्चचतुस्त्रियोजनबाहुल्यास्तत ऊर्ध्वं लोकस्योपरि कोशद्वयकक्रोशपञ्चविंशतिदण्डाधिकदण्डसतचतुष्टयोनकक्रोशबाहुल्याश्च भवन्ति । तदनेन कूर्माद्याधारता जगतो निषिद्धा । सप्तवचनात्सङ्खयान्तरनिरासः । सप्तव ताः स्युन हीनाधिका इति । अधोऽधोवचनं ग्रामनगरादिवत्तिर्यगवस्थाननिवृत्तयर्थम् । तत्र मेरुतले लोकमध्यादधो रत्नप्रभा अशीतिसहस्राधिकलक्षयोजनबाहुल्या। ततोधः शर्कराप्रभा द्वात्रिंशद्योजनसहस्रबाहुल्या। ततोप्यधो वालुकाप्रभा अष्टाविंशतियोजनसहस्रबाहुल्या । ततोधः पङ्कप्रभा चतुर्विंशतियोजनसहस्रबाहुल्या । ततोधो धूमप्रभा विंशतियोजनसहस्रबाहुल्या । ततोधस्तमःप्रभा षोडशयोजनसहस्रबाहुल्या । ततोधो महातमःप्रभा अष्टयोजनसहस्रबाहुल्येति योज्यम् । एतासां प्रत्येकमन्तराणि सङ्ख्यातीतयोजनकोटी
घनवात दो कोस मोटा अम्बुवात एक कोस मोटा और तनुवात चार सौ पच्चीस धनुष कम एक कोस मोटा रह जाता है। ___इसप्रकार संपूर्ण जगत्-लोक का आधार ये वायु मण्डल है यह सिद्ध होता है अतः जो लोग जगत् का आधार कछुआ है, शेषनाग है इत्यादि रूप मानते हैं उस मान्यता का खण्डन हो जाता है । सात भूमियां हैं ऐसा कहने से अन्य संख्या का निरसन हो जाता है, ये भूमियां सात ही हैं इससे न अधिक हैं और न कम ही हैं। अधोऽधः जो पद आया है उससे यह सिद्ध होता है कि ये भूमियां नीचे नीचे अवस्थित हैं, ग्राम. नगर आदि के समान तिर्यग् स्वरूप स्थित नहीं हैं। अब इन सातों भूमियों का बाहुल्य [ मोटाई ] बतलाते हैं, मेरुतल में लोक के मध्य से नीचे रत्नप्रभा भूमि है, इसका बाहुल्य एक लाख अस्सी हजार महायोजन प्रमाण है । उसके नीचे शर्करा भूमि है वह बत्तीस हजार योजन बाहुल्य वाली है । उसके नीचे वालुका भूमि है वह अट्ठावीस हजार योजन बाहुल्य की है । उसके नीचे पंकप्रभा भूमि है, यह चौबीस हजार योजन मोटी है । उसके नीचे धूमप्रभा भूमि है यह बीस हजार योजन मोटो है। उसके नीचे तमःप्रभा भूमि है यह सोलह हजार योजन मोटो है । उसके नीचे महातमःप्रभा पृथिवी है यह आठ हजार योजन बाहुल्य वाली है । इन सातों पृथिवियों के बीच बीच में जो छह अन्तराल हैं वे प्रत्येक प्रत्येक असंख्यात कोटाकोटी योजन प्रमाण के हैं।
ये सातों ही पृथिवियां त्रस नाली में हैं एक के नीचे एक हैं। हीन परिणाह हैं, अर्थात् मोटाई कम कम है ऐसा नहीं समझना कि नीचे नीचे अधिक विस्तीर्ण हैं, क्योंकि आगम में इसीतरह प्रतिपादन किया गया है । आगम में ऐसा कथन मिलता है