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________________ १२४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती रज्जुमुत्क्रम्य विष्कम्भो द्वे रज्जू रज्ज्वाश्चैकस्सप्तभागस्ततो रज्जुमुत्क्रम्य तिस्रो रज्जवो रज्ज्वाश्च द्वौ सप्तभागौ। ततो रज्जुमुत्क्रम्य चतस्रो रज्जवो रज्ज्वाश्च त्रयस्सप्तभागाः । ततोर्धरज्जुमुत्क्रम्य रज्जव: पञ्च । ततोऽर्धरज्जुमुत्क्रम्य चतस्रो रज्जवो रज्ज्वाश्च त्रयस्सप्तभागाः । ततो रज्जुमुत्क्रम्य तिस्रो रज्जवो रज्ज्वाश्च द्वौ सप्तभागौ । ततो रज्जुमुत्क्रम्य द्वे रज्जू रज्ज्वाश्चैकस्सप्तभागाः । ततो रज्जुमुत्क्रम्य लोकान्ते रज्जुरेका विष्कम्भः इत्येष लोको रज्जुविधिना परिच्छिन्नो ज्ञेयः । अस्य चाधोमध्योर्ध्वभागत्रयसम्भवेऽधोभागस्तावद्वक्तव्यः । एतस्मिश्च संसारिविकल्पा नारकास्तिष्ठन्ति । तत्प्रतिपादनार्थं तदधिकरणनरकाधिष्ठानभूतभूमिसप्तकनिर्देशः क्रियतेरत्नशर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोऽधः ॥ १॥ पटल भूमि है उससे ऊपर एक राजू चले जाने पर लोक की चौड़ाई दो राजू पूर्ण और एक राजू के सात भागों में से एक भाग प्रमाण है । उसके ऊपर एक राजू जाने पर चौड़ाई तीन राज और एक राजू के सात भागों में से दो भाग की है। उसके ऊपर एक राजू जाने पर चार राजू पूर्ण तथा एक राजू के सात भागों में से तीन भाग की चौड़ाई है । उसके ऊपर आधा राजू चले जाने पर पांच राजू की चौड़ाई है। उसके ऊपर आधा राजू जाने पर चार राजू पूर्ण और एक राजू के सात भागों में से तीन भाग चौड़ाई है। उसके ऊपर एक राजू जाने पर तीन राजू और एक राजू के सात भागों में से दो भाग चौड़ाई है। उसके ऊपर एक राजू जाने पर दो राजू पूर्ण और एक राज के सात भागों में से एक भाग प्रमाण चौड़ाई है। उसके ऊपर एक राज जाकर लोक के अन्त में एक राजू की चौड़ाई है । इसप्रकार राजू की विधि द्वारा लोक नापा गया है । इस लोक के अधोभाग, मध्यभाग और ऊर्ध्वभाग ऐसे तीन भाग हैं। उनमें पहले अधोभाग का कथन करना चाहिये । इसी अधोभाग में संसारी जीवों के भेद स्वरूप नारकी जीव रहते हैं। उन नारकी जीवों के प्रतिपादन के लिये उनके आधार भूत नरकों के अधिष्ठान स्वरूप सात भूमियाँ हैं उनका निर्देश करते हैं सूत्रार्थ-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, महातमःप्रभा ये सात भूमियां हैं । ये भूमियां घनवात, घनोदधिवात और तनवात के आधार में स्थित हैं । पुनश्च ये वातवलय आकाश के आधार पर हैं। ये सातों ही
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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