SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीयोऽध्यायः [ १२३ देका रज्जुः । ततोऽधःपृथिवीनां पञ्चानां प्रत्येकमन्तेऽन्ते रज्जुरेकैका वृद्धा। ततोऽधस्तमस्तम प्रभाया आलोकान्तादेका रज्जुः । एवं सप्ताधोरज्जवः । अधोलोकमूले दिग्विदिक्षु विष्कम्भः सप्तरज्जवः । तिर्यग्लोक एका । ब्रह्मलोके पञ्च । पुनर्लोकाग्रे रज्जुरेका । लोकमध्यादधो रज्जुमवगाह्य शर्करान्तेऽष्टास्वपि दिग्विदिक्षु विष्कम्भो रज्जुरेका रज्ज्वाश्च षट्सप्तभागाः । ततो रज्जुमवगाह्य वालुकान्ते द्वे रज्जू रज्ज्वाश्च पञ्चसप्तभागाः । ततो रज्जुमवगाह्य पङ्कान्ते तिस्रो रज्जवो रज्ज्वाश्च चत्वारस्सप्तभागाः । ततो रज्जुमवगाह्य धूमान्ते चतस्रो रज्जवो रज्ज्वाश्च त्रयः सप्तभागाः। ततो रज्जुमवगाह्य तमःप्रभान्ते पञ्चरज्जवो रज्ज्वाश्च द्वौ सप्तभागौ। ततो रज्जुमवगाह्य तमस्तमःप्रभान्ते षड्रज्जवः । सप्तभागश्चैकस्ततो रज्जुमवगाह्य कलङ्कलान्ते विष्कम्भः सप्तरज्ज्वः । वज्रतलादुपरि लोकान्त में सात राजू प्रमाण क्षेत्र पूर्ण होता है । यह तो ऊर्ध्वलोक के राजूओं का क्रम हुआ। अब अधोलोक का बतलाते हैं-लोक मध्य से लेकर शर्करा पृथिवी के अन्त भाग तक एक राजू क्षेत्र पूर्ण होता है। उससे नीचे की पांच पृथिवी पर्यन्त प्रत्येक पृथिवी के अन्त में एक एक राजू प्रमाण है। उससे नीचे तमस्तमप्रभा पृथिबी से लोकान्त तक एक राजू पूर्ण होता है और इसतरह अधोभाग के सात राजू होते हैं । अधोलोक के मूल में दिशा विदिशा में लोकाकाश की चौड़ाई सात राजू है। पुनः ऊपर घटती हुई मध्यलोक में एक राजू रह गई है। पुनः ऊर्ध्वलोक में बढ़ती हुई ब्रह्म स्वर्ग में पांच राजू प्रमाण लोक की चौड़ाई होती है और पुनः घटते हुए लोकाग्र में एक राजू चौड़ाई रह जाती है। इसीको और भी स्पष्ट करते हैं-मध्यलोकतिर्यग्लोक से एक राजू नीचे चले जाने पर शर्करा भूमि के अन्त में आठों दिशा विदिशाओं में लोक की चौड़ाई एक राजू पूर्ण तथा एक राजू के सात भागों में से छह भाग प्रमाण होती है । उससे नीचे वालुका पृथिवी के अंत में दो राज और एक राजू के सात भागों में से पांच भाग प्रमाण चौड़ाई है । उससे एक राजू नीचे जाकर पंक प्रभा के अंत में तीन राजू और राजू के सात भागों में से चार भाग प्रमाण चौड़ाई है । उससे एक राजू नीचे जाकर धूमप्रभा के अन्त में चार राजू और एक राजू के सात भागों में से तीन भाग चौड़ाई है। उससे नीचे एक राजू जाकर तमःप्रभा के अन्त में पांच राजू और एक राजू के सात भागों में से दो भाग चौड़ाई है । उससे नीचे एक राजू जाकर तमः तमप्रभा के अन्त में छह राजू और एक राजू के सात भागों में से एक भाग चौड़ाई है । उससे नीचे एक राजू जाकर कलंकल के अन्त में सात राजू प्रमाण चौड़ाई है । अब ऊपर की चौड़ाई बताते हैं—मेरु के तल में जो वज्र
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy