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________________ अथ तृतीयोऽध्यायः प्रवाह वातवलयत्रयेण सर्वः समन्तात्परिक्षिप्तो रज्जुविधिना च परिच्छिन्नो लोक आगमान्तरे प्रतिपादितस्तस्य सन्निवेशसंस्थानप्रमाणवचनं कर्तव्यमित्यत्रोच्यते । तथाहि-अलोकाकाशस्यानन्तस्य बहुमध्ये सुप्रतिष्ठकसंस्थानो लोकः । ऊर्ध्वमधस्तिर्यक्च मृदङ्गवेत्रासनझल्लाकृतिस्तनुवातान्तवलयपरिक्षिप्त ऊधिस्तिर्यक्षु प्रतरवृत्तश्चतुर्दशरज्ज्वायामो मेरुप्रतिष्ठवज्रवैडूर्यपटलान्तररुचकसंस्थिता अष्टाकाशप्रदेशा लोकमध्यम् । लोकमध्याद्यावदेशानान्तस्तावदेका रज्जुरर्धं च । माहेन्द्रान्ते तिस्रो ब्रह्मलोकान्ते अर्धचतुर्थाः। कापिष्ठान्ते चतस्रो महाशुक्रान्तेऽर्धपञ्चमा । सहस्रारान्ते पञ्च । प्राणतान्तेऽर्धषष्ठाः । अच्युतान्ते षट् । आलोकान्तात्सप्त । तथा लोकमध्यादधो यावत्शर्करापृथिव्यन्तस्ताव यहां पर कोई कहता है कि अन्य आगम में तीन वातवलयों से सब ओर से परिवेष्टित और राजू विधि से नापा गया लोक बतलाया है, उस लोक की रचना कैसी है तथा संस्थान और प्रमाण क्या हैं यह सब कथन इस ग्रंथ में करना चाहिये । सो इसतरह का प्रश्न होने पर इसी का प्रतिपादन करते हैं-अनन्त प्रदेशी अलोकाकाश के बहु मध्य में सुप्रतिष्ठ संस्थान वाला लोक है। इसका ऊर्ध्व भाग मृदंग आकार सदृश है, अधोभाग वेत्रासनाकृति है और मध्यभाग झालर के आकार का है । ऊपर नीचे और तिरछे तनुवात वलय नामके अन्तर वायु से वेष्टित है, प्रतर वृत्त है, चौदह राजू आयाम वाला है । मध्य लोक में मेरु पर्वत के आधार भूत जो भूमि है उस भूमि के सोलह पटल हैं उनमें से ऊपर के वज्र और वैडूर्य नाम वाले दो पटलों के अन्तराल में स्थित रुचक के समान आकार धारक जो आकाश के आठ प्रदेश हैं वह लोक का मध्य है। अर्थात् लोक का मध्य मेरु के जड़ में वज्र पटल और वैडूर्य पटल के बीच में है। जो कि आठ प्रदेश स्वरूप है एवं रुचकाकार है । उक्त लोक मध्य से लेकर ईशान स्वर्ग के अन्त भाग तक डेढ़ राजू प्रमाण क्षेत्र हो जाता है । माहेन्द्र स्वर्ग के अन्त में तीन राजू पूर्ण होते हैं । ब्रह्मलोक के अन्त में साढ़े तीन राजू, कापिष्ठ के अन्त में चार राजू, महाशुक्र स्वर्ग के अन्त में साढ़े चार राजू, सहस्रार के अन्त में पांच राजू, प्राणत स्वर्ग के अन्त में साढ़े पांच राजू, अच्युत के अन्त में छह राजू और
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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