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________________ ११० ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती परं परं सूक्ष्मम् ।। ३७ ॥ - पूर्वापेक्षया परत्वमिति परशब्दोऽत्र व्यवस्थार्थः । तस्य सूक्ष्मत्वगुणेन वीप्सायां द्वित्वम् । परंपरमिति सूक्ष्मत्वं चोत्तरोत्तरस्य परिणतिविशेषाग्राह्य न परमाणुभिरुत्तरसूत्रसामर्थ्यात् । तेनौदारिकात्परं वैक्रियिक सूक्ष्मम् । तस्मात्परमाहारकं सूक्ष्मम् । ततोऽपि परं तैजसं सूक्ष्मम् । तैजसात्परं कार्मणं सूक्ष्ममिति निश्चयः । तर्हि प्रदेशतः कथमित्याह प्रदेशतोऽसङ्घय यगुणं प्राक्त जसात् ॥ ३८ ॥ अविभागित्वेन प्रदिश्यन्ते प्ररूप्यन्त इति प्रदेशाः परमाणवः । प्रदेशैः प्रदेशतः । सङ्ख्यामतीतोऽसङ्खयः स चात्र श्रेण्या असङ्ख्ययभागो गृह्यते । गुण्यतेऽनेनेति गुणः गुणकार इत्यर्थः । असङ्खये यो गुणो यस्य तदसङ्खये यगुणम् । प्राक्छब्दो मर्यादार्थः। परंपरमित्यनुवर्तते । तेनौदारिका सूत्रार्थ-आगे आगे वे शरीर सूक्ष्म स्वरूप हैं। पूर्व की अपेक्षा आगे को परत्व संज्ञा होती है, पर शब्द व्यवस्थावाची है उस पर शब्द को वीप्सा अर्थ में द्वित्व हुआ है आगे आगे के सूक्ष्म हैं अर्थात् ये शरीर परिणति विशेष के कारण उत्तरोत्तर सूक्ष्म होते गये हैं । परमाणुओं के कारण सूक्ष्म नहीं हैं ऐसा आगे के सूत्र सामर्थ्य से जाना जाता है । अर्थ यह हुआ कि औदारिक से वैक्रियिक सूक्ष्म है, वैक्रियिक से आहारक सूक्ष्म है, उससे भी सूक्ष्म तैजस और उससे सूक्ष्म कार्मण शरीर होता है । प्रदेशों की अपेक्षा वे शरीर कैसे हैं इस बात को कहते हैं सत्रार्थ-प्रदेशों की अपेक्षा वे शरीर तैजस के पहले आहारक तक असंख्यात गुणे असंख्यात गुणे हैं । अविभाग रूप से जो कहे जाते हैं वे प्रदेश हैं अर्थात् परमाणु । तृतीया अर्थ में प्रदेश शब्द से तस् प्रत्यय हुआ है । संख्या से अतीत असंख्यात कहलाता है । यहां पर श्रेणि के असंख्यातवें भाग प्रमाण वाला असंख्यात लिया है । गुण का अर्थ-गुणकार है । असंख्येय गुणा जिसका हो वह संख्या असंख्येय गुणा कहलाती है। प्राक् शब्द मर्यादा अर्थ में ग्रहण किया है । परं परं का अध्याहार है । उससे औदारिक से असंख्यात गुणे प्रदेश वैक्रियिक के और उससे भी असंख्यात गुणे प्रदेश आहारक के होते हैं ऐसा निश्चय होता है ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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