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________________ १०८ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती निर्गतमात्रा एव परिस्पन्दादिसामर्थ्ययुक्ताः पोताः । जरायुजाश्चाण्डजाश्च पोताश्च जरायुजाण्डजपो - तास्तेषामेव गर्भः । गर्भ एव च तेषामित्युभयथा नियमो द्रष्टव्यः । प्रथोपपादः केषां भवतीत्याहदेवनारकाणामुपपादः ॥ ३४ ॥ देवनारकाश्च वक्ष्यमाणलक्षणाः । तेषामेवोपपादः, उपपाद एव च तेषामित्यत्राप्युभयथावधारणं ज्ञातव्यम् । सम्मूर्छनं जन्म केषां स्यादित्याह - शेषाणां सम्मूर्च्छनम् ।। ३५ ।। उक्त ेभ्यो गर्भो पपादिकेभ्योऽन्ये शेषाः । ते चैकेन्द्रियविकलेन्द्रियाः पञ्चेन्द्रियाश्च तिर्यङ मनुष्याः केचिदुच्यन्ते । तेषां शेषाणामेव सम्मूर्छनं जन्म भवति । सम्मूर्छनमेव च शेषाणामित्युभयथा नियमः पूर्ववद्वेदितव्यः । अथ येषां शरीराणां प्रादुर्भवनं जीवस्य जन्म व्यावरिणतं तानि कानीत्याह वरण के विना ही पूर्ण अंगवाला होकर योनि से निकलते ही हलन चलनादि शक्ति से युक्त जो होता है वह पोत है, जरायुज आदि पदों का द्वन्द्व समास है । जरायुज आदि केही गर्भ जन्म होता है अथवा गर्भ जन्म ही उनके होता है ऐसा उभयथा नियम लगा लेना चाहिये । उपपाद जन्म किनके होता है यह बतलाते हैं सूत्रार्थ - देव और नारकियों के उपपाद जन्म होता है । देव और नारकी का लक्षण आगे कहेंगे, उनके ही उपपाद जन्म होता है अथवा उपपाद जन्म ही उनके होता है ऐसा उभयथा अवधारण जानना चाहिये । सम्मूर्छन जन्म किनके होता है यह बतलाते हैं सूत्रार्थ - शेष जीवों के सम्मूर्छन जन्म होता है । कहे गये गर्भ और उपपाद वालों को छोड़कर जो अन्य हैं वे शेष हैं, वे एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय हैं तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्यों में से कोई कोई तिर्यंच मनुष्यों का शेष शब्द से ग्रहण होता है, उन शेष जीवों का ही सम्मूर्छन जन्म होता है अथवा सम्मूर्छन जन्म ही शेष का होता है ऐसा उभयथा नियम पूर्ववत् लगा लेना चाहिये । जिन शरीरों के उत्पन्न होने से जीवों का जन्म हुआ माना जाता है वे शरीर कौनसे हैं ऐसा पूछने पर कहते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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