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________________ द्वितीयोऽध्यायः [१०७ वीप्सार्थस्योपादानं क्रममिश्रप्रतिपत्त्यर्थम् । तेषां जन्मविशेषाणां योनय आश्रयास्तधोनयः । ततः सचित्तोऽचित्तस्तन्मिश्रश्च, शीत उष्णस्तन्मिश्रश्च, संवृतो विवृतस्तन्मिश्रश्चेति यथाक्रमं तेषां जन्मविशेषाणामाधेयानामाधारभूता योनयो नवप्रकारा भवन्ति–चतुरशीतियोनिलक्षाणामागमान्तरोक्तानामत्रैवान्तर्भावात् । उक्त च णिच्चिदरधादुसत्तय तरुदसवियलिन्दिएसु छच्चेव । सुरणिरयतिरिय चउरो चोद्दसमणुए सदसहस्सा ।। इति ।। तत्र गर्भो जन्मविशेषः केषामित्याह जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः ॥ ३३ ॥ यत्प्राणिपरिवरणं विततमांसशोणितं तज्जरायुः । जरायो जाता जरायुजाः । यत्कठिनं शुक्रशोणितपरिवरणं वर्तुलं तदण्डम् । अण्डे जाता अण्डजाः । परिवरणं विनैव परिपूर्णाङ्गा योनि तत्पुरुष समास हुआ है । अतः सचित्तयोनि, अचित्तयोनि और उनसे मिश्रित सचित्ताचित्तयोनि, शीतयोनि, उष्णयोनि और उनसे मिली शीतोष्णयोनि, संवृतयोनि, विवृतयोनि और इनके मिश्रण से संवृतविवृतयोनि इस तरह उन जन्मों के आधारभूत नौ प्रकार की योनियां होती हैं। इन नौ योनियों में आगम में कही गई चौरासी लाख योनियों का अन्तर्भाव हो जाता है । कहा भी है नित्य निगोद, इतर निगोद, पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक इनमें प्रत्येक की सात सात लाख योनियां होती हैं, वनस्पति के दस लाख, द्वीन्द्रिय के दो लाख, त्रीन्द्रिय के दो लाख, चतुरिन्द्रिय के दो लाख, देवों के चार लाख, नारकी के चार लाख, पंचेन्द्रिय तिर्यंच के चार लाख और मनुष्यों के चौदह लाख योनियां कही गई हैं ॥१॥ गर्भ जन्म किनके होता है ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैंसूत्रार्थ-जरायुज, अण्डज और पोत के गर्भ जन्म होता है । प्राणियों में जो मांस और रक्त से युक्त आवरणसा होता है वह जरायु कहलाता है जो जरायु में उत्पन्न हुआ है वह "जरायुज" है । शुक्र शोणित के परिवरण स्वरूप कठिन सा जो गोलाकार होता है वह अण्डा है उस अण्डे में हुआ अण्डज है। परि
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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