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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती
एकसमयाऽविग्रहा ॥ २६ ॥ एकशब्दः सङ्ख्यावाची । परमनिरुद्धो विभागरहितः क्षणः कालः समय इत्युच्यते । एकः समयो यस्या असाचेकसमया। अविग्रहा गतिरवक्रेत्युक्ता । गतिमतां जीवपुद्गलानामवक्रा गतिरालोकान्तादप्येकसमयिकी भवति । तथैकवका द्विसमया, द्विवक्रा त्रिसमया, त्रिवका चतु:समया गतिरित्यप्यत्र निश्चीयते । जीवस्य समयत्रयाहारकत्वप्रतिषेधस्योत्तरसूत्रेणान्यथानुपपत्त: प्राप्तिपूर्वकत्वात्तस्येति । देहान्तरसम्प्राप्तिनिमित्तभूतासु चतसृष्वपीष्वाकारादिगतिष्वाहारको जीवः प्रसक्त इत्यपवादमाह
एकं द्वौ त्रीन्वानाहारकः ॥ ३० ॥ अत्र समयग्रहणमनुवर्तते । वाशब्दो विकल्पवाची । विकल्पश्च यथेच्छातिसर्गस्त्रीण्यौदारिक
सूत्रार्थ-मोडा रहित-ऋजुगति एक समय वाली होती है । एक शब्द संख्यावाची है, परम निरुद्ध विभाग रहित क्षण रूप काल समय कहलाता है अर्थात् काल का वह छोटा अंश जिसका कि विभाग नहीं हो सके । एक समय है जिसके वह एक समय वाली मोडा रहित ऋजुगति होती है । गति शील जीव और पुद्गलों की मोडा रहित गति लोकान्त तक होने पर भी वह मात्र एक समय में हो जाती है। तथा एक मोडा वाली दो समय युक्त होती है । दो मोडा वाली तीन समय युक्त और तीन मोडा वाली चार समय युक्त होती है ऐसा यहां निश्चय समझना। जीव तीन समय तक आहारक नहीं होता, विग्रह गति में तीन समय पर्यन्त आहारकपने का निषेध अग्रिम सूत्र में होनेवाला है उसकी अन्यथानुपपत्ति से यह जाना जाता है कि एक मोडा दो मोडा और तीन मोडा वाली विग्रह गति भी होती है अन्यथा आगे जो एक दो तीन समय तक अनाहारक रहने का कथन है वह सिद्ध नहीं होता।
. दूसरे शरीर को प्राप्त करने में निमित्तभूत जो चार प्रकार की इष्वाकार आदि गतियां हैं उनमें जीव के आहारकपने का प्रसंग आनेपर जो अपवाद है उसे कहते हैं अर्थात् उक्त इष्वाकारादि गतियों में सबमें आहारक नहीं रहता ऐसा आगे के सूत्र में बतलाते हैं
सूत्रार्थ- एक दो या तीन समय तक जीव अनाहारक होता है।
समय शब्द का अनुवर्तन चल रहा है, वा शब्द विकल्प वाची है, और वह विकल्प इच्छानुसार लगता है, अर्थात् एक समय तक अथवा दो समय तक, अथवा