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________________ द्वितीयोऽध्यायः [ १०३ विग्रहवती च संसारिणः प्राक्चतुर्व्यः ।। २८ ।। विग्रहवती वक्रा। चशब्दादविग्रहा लभ्यते । संसारी व्याख्यातार्थः । प्रागिति वचनं मर्यादार्थम् । वक्ष्यमाणसमयनिर्देशसामर्थ्यादिह चतुर्व्यः समयेभ्य इति प्राप्यते । तेन संसारिणो जीवस्य कदाचिदविग्रहेष्वाकारा गतिर्भवति, कदाचिदेकवक्रा पाणिविमुक्ता स्यात्, कदाचिद्विवक्रा लागली जायते, कदाचिच्च त्रिवका गोमूत्रिका गतिः सम्भवति । न चतुर्थे समये, तथाविधोपपादक्षेत्राभावादिति निश्चीयते । तत्र गतिकालावधारणार्थमाह सूत्रार्थ- संसारी जीवों के मोडावाली गति चार समय के पहले होती है । वक्र को विग्रह वती कहते हैं, च शब्द से अविग्रह गति भी होती है। संसारी शब्द का अर्थ कह चुके हैं। प्राक् शब्द मर्यादा अर्थ में आया है, अग्रिम सूत्रस्थ समय शब्द की सामर्थ्य से यहां चार समय के पहले ऐसा अर्थ प्राप्त होता है। इससे यह अर्थ निकलता है कि संसारी जीवों की कभी मोडा रहित इष्वाकार-बाण जैसी गति होती है, तो कभी एक मोडावाली पाणिमुक्ता-हाथ से छोडे गये जल के समान आकार वाली गति होती है, कदाचित् दो मोडावाली लांगली-हल जैसे आकार वाली गति , होती है। कदाचित् तीन मोडावाली गोमूत्रिका गोमूत्र के आकार जैसे गति होती है। चौथे समय की गति नहीं होती है क्योंकि उस प्रकार का उपपाद क्षेत्र नहीं है । भावार्थ-जब जीव मरण कर दूसरे स्थान पर जन्म लेता है वह स्थान यदि वक्र है तो मोड लेना पड़ता है यदि सरल है तो बिना मोडा के एक ही समय में सीधा बाण की तरह यह जीव पहुंच जाता है, कदाचित् एक मोडा लेकर जाता है तो दो समय लगते हैं एक मोडा लेने का और एक जन्म का। कदाचित् दो मोडे लेता है उसमें तीन समय लगते हैं, दो मोडे के दो समय और एक समय जन्म का । कभी तीन मोडे लेता है उसमें चार समय लगते हैं तीन मोडे के तीन समय और चौथा जन्म का समय । चार मोडा लेना पड़े ऐसा कोई भी स्थान या क्षेत्र नहीं है। तीन मोडे भी वह जीव लेता है, जो एकेन्द्रिय है और लोक के नीचे के कोण से ऊपर लोकाग्र कोण में जन्म लेने वाला है, जिसे निष्कृष्ट क्षेत्र कहते हैं । अतः टीकाकार ने कहा है कि ऐसा कोई उपपाद-जन्म लेने का क्षेत्र-स्थान नहीं है जहां पर कि पहुंचने के लिये चार मोडे लेने पड़े। ऋजु गति के काल का अवधारण करते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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