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________________ द्वितीयोऽध्यायः [ ९७ स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥ २० ॥ यदा स्पर्शादिशब्दैः प्राधान्येन द्रव्यमुच्यते तदा तेषां कर्मसाधनत्वं वेदितव्यं-यथा स्पृश्यत इति स्पर्शो द्रव्यम् । एवं रस्यत इति रसः, गन्ध्यत इति गन्धः, वर्ण्यत इति वर्णः, शब्दयत इति शब्दः । यदा तु स्पर्शादयः शब्दाः प्राधान्येन गुणवाचिनस्तदा तेषां भावसाधनत्वम् । यथा स्पर्शनं स्पर्शो गुणः । एवं रसनं रसः, गन्धनं गन्धः, वर्णनं वर्णः, शब्दनं शब्द इति । स्पर्शश्च रसश्च गन्धश्च वर्णश्च शब्दश्च स्पशरसगन्धवर्णशब्दाः । तच्छब्देन स्पर्शनादीन्द्रियाणां परामर्शः। अर्थशब्दोऽत्र विषयवाची। तेषामस्तिदर्थाः । त इमे स्पर्शादयस्तेषां स्पर्शनादीनामिन्द्रियाणां यथासङ्ख्य ग्राह्यरूपा भवन्तीति समुदायार्थः । अनिन्द्रियस्य को विषय इत्याह घ्राण है, देखता है वह चक्ष है, सुनता है वह श्रोत्र है । स्पर्शन आदि पदों का द्वन्द्व समास हुआ है । ये स्पर्शन आदिक इन्द्रियों के नाम हैं। इन इन्द्रियों में विषय भेद होने से भेद होता है। अब इनके विषयों का प्रतिपादन करते हैं सूत्रार्थ-स्पर्शनेन्द्रिय आदि इन्द्रियों के क्रमशः स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द ये विषय हैं। जब स्पर्श आदि शब्द द्वारा प्रधानता से द्रव्य कहा जाता है तब इन स्पर्श आदि शब्दों की निरुक्ति कर्म साधनरूप करना जैसे जो छुआ जाता है वह स्पर्श है अर्थात् स्पर्श वाला पदार्थ । इसीप्रकार जो चखा जाता है वह द्रव्य-वस्तु रस है जो सूघा जाता है वह अर्थ गन्ध है, जो देखा जाता है वह पदार्थ वर्ण है और जो सुनने में आता है वह द्रव्य शब्द है इन स्पर्शादि शब्दों की जब गुण की प्रधानता से निरुक्ति करना है तब भाव साधन होता है । जो छुआ वह स्पर्श अर्थात् स्पर्श नाम का गुण, इसीतरह रसनं रसः, गन्धनं गंधः, वर्णनं वर्णः, शब्दनं शब्दः ऐसा भाव साधन बना लेना । स्पर्शादि पदों में द्वन्द्व समास है । सूत्र में तत् शब्द आया है उससे स्पर्शनादि इन्द्रियों का ग्रहण होता है । अर्थ शब्द विषय वाची है, इनमें तत्पुरुष समास है । समुदाय रूप अर्थ यह हुआ कि ये स्पर्श रस आदि उन स्पर्शन आदि इन्द्रियों के क्रमशः विषय हैंउनके द्वारा ये विषय ग्रहण किये जाते हैं । अनिन्द्रिय का क्या विषय है यह बतलाते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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