________________
९२ ]
सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तो सम्भवात्तत्कृतपृथिवीव्यपदेशासिद्धेः । तस्माज्जीवाधिकारात्पृथिवीकायत्वेन गृहीतवतः पृथिवीका यिकस्य विग्रहगत्यापन्नस्य पृथिवीजीवस्य च ग्रहणं तयोरेव पृथिवीस्थावरनामकर्मोदयसद्भावात्पृथिवीव्यपदेशघटनात् । एवमप्तेजोवायुवनस्पतीनामपि व्याख्यानं योजनीयम् । त एते पञ्चविधाः प्राणिन एकेन्द्रियाः स्थावराः प्रत्येतव्याः। एषां चत्वारः प्राणाः सन्ति-स्पर्शनेन्द्रियप्राणः, कायबलप्राणः, उच्छ्वासनिःश्वासप्राणः, प्रायुः प्राणश्चेति । अथ के ते वसा इत्याह
द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः ।। १४ ।। द्वे इन्द्रिये यस्य सोऽयं द्वीन्द्रियः । द्वीन्द्रिय अादिर्येषां ते द्वीन्द्रियादय: अत्रादिशब्दस्य व्यवस्था
अधिकार है, इसलिये पृथिवी को शरीर रूप से जिसने ग्रहण किया है वह पृथिवीकायिक और विग्रहगति में स्थित पृथिवी नाम कर्मोदय वाला पृथिवी जीव इसप्रकार दो का ग्रहण किया है । इनके ही पृथिवी स्थावर नाम का उदय होने से पृथिवी संज्ञा घटित होती है। इसीप्रकार अग्नि, जल वायु और वनस्पति में चार चार भेद लगाना चाहिये।
विशेषार्थ-जो अचेतन है, प्राकृतिक परिणमनों से बनी है और कठिन गुण वाली है वह पृथिवी कहलाती है, अचेतन होने से यद्यपि इसमें पृथिवी नाम कर्म उदय नहीं है तो भी प्रथन क्रिया से उपलक्षित होने के कारण पृथिवी कहलाती है। काय का अर्थ शरीर है पृथिवी कायिक जीव द्वारा जो छोड़ दिया गया है वह पृथिवी काय है। जिस जीव के पृथिवी रूप काय विद्यमान है वह पृथिवी कायिक है । कार्मण काय योग में स्थित विग्रह गति वाला जीव जब तक पृथिवी को काय रूप से ग्रहण नहीं करता है तब तक पृथिवी जीव है । इसीप्रकार अग्नि, अग्निकाय, अग्निकायिक और अग्नि जीव । जल, जलकाय, जलकायिक और जलजीव, वायु, वायुकाय, वायुकायिक और वायुजीव, वनस्पति, वनस्पतिकाय वनस्पतिकायिक और वनस्पति जीव इसतरह चार चार भेद होते हैं, इनके उदाहरण आगमानुसार ज्ञात कर लेने चाहिये ।
वे सभी पाँच प्रकार के स्थावर एकेन्द्रिय जीव हैं इन जीवों के चार प्राण होते हैंस्पर्शनेन्द्रियप्राण, कायबल प्राण, उच्छ्वासनिश्वासप्राण और आयुप्राग ।
त्रस जीव कौन हैं ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
सत्रार्थ-द्वीन्द्रिय आदि जीव त्रस कहलाते हैं । दो इन्द्रियां जिसके पायी जाती हैं वह द्वीन्द्रिय है । द्वीन्द्रिय है आदि में जिसके वे द्वीन्द्रियादि कहलाते हैं। यहां पर