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________________ ७८ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती स्ति । तथा पारिणामिकः षण्णामपि द्रव्याणां सम्भवतीति च प्रत्येतव्यम् । प्रत्येकमौपशमिकादयो भावाः किं भेदवन्त उताऽभेदा इत्याह द्विनवाष्टादशेकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ॥ २॥ द्वयादयः शब्दाः सङ्घय यप्रधानास्तत्साहचर्यादेकविंशतिशब्दोऽपि सङ्ख्य यप्रधानो गृह्यते न सङ्ख्यावचनः । द्वौ च नव चाष्टादश चैकविंशतिश्च त्रयश्च द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रयः । ते भेदा येषामौपशमिकादीनां ते द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदाः क्रमस्यानतिक्रमेण यथाक्रमं यथासङ्खयमित्यर्थः । तत औपशमिको द्विभेदः । क्षायिको नवभेदः । मिश्रोऽष्टादशभेदः । औदयिक एकविंशतिभेदः । पारिणामिकस्त्रिभेद इति ज्ञेयम् । तत्राद्यस्यौपशमिकस्य द्वौ भेदौ कावित्याह सम्यक्त्वचारित्रे ॥ ३॥ तत्र दर्शनमोहसम्बन्धिन्यस्तिस्रः कर्मप्रकृतयो मिथ्यात्वं सम्यङि मथ्यात्वं सम्यक्त्वं चेति । णाम-परिणमन भी परके निमित्त से न होकर स्व स्व स्वभाव से ही अनादि काल से प्रत्येक द्रव्य में पाये जाते हैं । ___प्रत्येक औपशमिक आदि भाव क्या भेद वाले हैं अथवा भेद रहित हैं ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं___सत्रार्थ-उन औपशमिक आदि पांचों भावों के क्रमशः दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद होते हैं। सूत्रोक्त द्वि आदि शब्द संख्येय प्रधान हैं और उनके साहचर्य से एकविंशति शब्द भी संख्येय प्रधान ग्रहण किया है, संख्या प्रधान नहीं। द्वि आदि पदों में द्वन्द्व समास करके पुनः भेद शब्द बहुब्रीहि समास द्वारा जोड़ा है । क्रम का उल्लंघन नहीं करके संख्या घटित करना । औपशमिक भाव दो भेद वाला, क्षायिक के नौ, मिश्र के [ क्षयोपशम के ] अठारह औदयिक के इक्कीस और पारिणामिक के तीन भेद जानना चाहिये । ओपशमिक के दो भेद कौनसे हैं ऐसा पूछने पर सूत्र कहते हैंसूत्रार्थ-उपशम सम्यक्त्व और उपशम चारित्र ऐसे औपशमिक दो भेद हैं । दर्शन मोह सम्बन्धी तीन कर्म प्रकृतियां हैं मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति । चारित्र मोह सम्बन्धी चार प्रकृति अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया,
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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