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________________ प्रथमोऽध्यायः [ ५९ नीतिर्वा नयो ज्ञातुरभिप्राय उच्यते । अनेन सर्वनयानां सामान्यलक्षणमुक्तम् । ततो नैगमादयो नयशब्देनोच्यन्ते । यथा सम्यग्ज्ञानशब्देन मत्यादीनीति । त एव नैगमादयो नयौ भवतः । श्रुतज्ञानपरिच्छिन्नवस्त्वंशाद्व्यपर्यायौ नीयेते यकाभ्यां तौ नयाविति व्युत्पत्तेः । तौ च द्रव्यार्थिकपर्यायाथिको । तत्र द्रव्यं सामान्यमभेद उत्सर्गोन्वय इत्यनर्थान्तरम् । तत्प्रयोजनो नयो द्रव्यार्थिकः । द्रव्यविषयो नयो द्रव्यार्थ इति वा । पर्यायो विशेषो भेदोऽपवादो व्यतिरेक इत्येकोऽर्थः । तत्प्रयोजनो नयः पर्यायाथिक: पर्यायविषयः पर्यायार्थ इति वा । द्रव्यास्तिकपर्यायास्तिकाविति वा संज्ञाद्वयम् । द्रव्यमस्तीति मति रस्येति द्रव्यास्तिकः, पर्यायोऽस्तीति मतिरस्येति पर्यायास्तिक इति व्युत्पत्तेः । अनेन संक्षेपतो नयविभागः कृतः । ते नैगमादयो नया भवन्ति-द्रव्यपर्यायभेदा यथास्वं नीयन्ते यकैस्ते नया इति निरुक्तिसद्भावात् । अनेन विस्तरतो नयविभागकथनं कृतम् । नैगमादिशब्दनिरुक्तया विशेषलक्षणं च सूचितम् । की हुई वस्तु का एकदेश जिसके द्वारा या जिसमें अथवा जिससे "नीयते" प्राप्त किया जाता है-जाना जाता है वह नय है । उसको ( वस्तु को ) ले जाता है वह नय है, नीति नय है, इसप्रकार नीयते, नयति, नीतिः इति नयः यह नय शब्द की निरुक्ति है। ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं। इससे सभी नयों का सामान्य लक्षण कहा । इस नय शब्द से नैगमादिक सभी नय कहे जाते हैं। जैसे सम्यग्ज्ञान शब्द से मति आदि सभी ज्ञान कहे जाते हैं । ये नैगमादि सातों नय ही दो नय रूप होते हैं, क्योंकि श्रुत ज्ञान के द्वारा गृहीत वस्तु के अंश से द्रव्य और पर्याय जिनके द्वारा प्राप्त किये जाते हैं वे नय हैं, इसतरह व्युत्पति है । द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक ऐसे ये दो नय हैं । द्रव्य, सामान्य, अभेद, उत्सर्ग और अन्वय ये शब्द एकार्थ वाची हैं, वह द्रव्य है प्रयोजन जिसका उसे द्रव्यार्थिक नय कहते हैं । द्रव्य विषयवाला द्रव्यार्थ नय है। पर्याय, विशेष, भेद, अपवाद, व्यतिरेक ये शब्द एकार्थवाची हैं, वह पर्याय है प्रयोजन जिसका उसे पर्यायाथिक नय कहते हैं । अथवा पर्याय विषयवाला पर्यायार्थ है । इनके द्रव्यास्तिक पर्यायास्तिक ये नाम भी हैं। द्रव्य के अस्तित्व को स्वीकार करे वह द्रव्य है इसप्रकार की बुद्धि है जिसकी वह नय द्रव्यास्तिक है, पर्याय है, इसप्रकार की बुद्धि है जिसकी वह पर्यायास्तिक है, इससे संक्षेप से नयों के विभाग को कहा। वे नैगमादि नय हैं। द्रव्य और पर्यायों के भेद यथायोग्य ले लिये जाते हैं जिनके द्वारा वे नय हैं ऐसी निरुक्ति करने से नयों के बहु भेद सिद्ध होते हैं। इससे विस्तर से नय विभाग को कह दिया समझना चाहिये । नैगमादि शब्दों की निरुक्ति करने से विशेष लक्षण सूचित होता है। नैगम,
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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