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________________ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः ३ पृष्ठ " . . " .. .. . . .. ६४० 'चिपय नत्यमने शरीरस्याऽऽत्मतं प्रन्यामत्तिलाश्वम गगरात्मवादी को प्रत्याजिराघर त्रुटिपाचषकारणकलापावंदनम् महत्त्व पीर उदभूत रूप में स्वतन्धकारणना 'अयोग्यवृत्तिधमायांग्यसभिकर्णग्रभावकूट प्रत्यक्षमात्र का कारण प्रत्यक्षसामान्यसामग्रीविचारः 'मम शरीरमि'निप्रतीतिपरीक्षणम् पार्थिवदेह कलेदनादेगेपाधिकना दिया गवं काल में कोई गमाग नहीं हैं. दिनकरीपवृत्तिम्वण्टनम आकाश अतिरिक्त इम्य नहीं है, . नुतन नास्तिक मुक्तावलीकृन्मनिराकरणम मन असमवेत भूत है . नगन नास्तिक. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कारसंवाद स्वभाव अनुपलब्धि से आत्मा की असिद्धि नामुमकिन . उनपक्ष स्याद्वादरत्नाकरमवादः आरोपयोग्य में ही आप मुमकिन लघुस्याद्वादरहस्यसंवादः अनुलब्धिसतकनिराकरणम् चाांक मत में भूनननुष्क की गनुपानि भूतचतुष्टयमात्रतत्नत्यपाहा कक्तिमत्वन कारणता में सापत्र - यावादी 'एकशक्तिमञ्चन हेनुताप्रकाशनम भूतचतन्यमनिरासः आत्म-कर्म-परभव मोक्षसिद्धिः न्यायभाष्यसंवादः नव्यनास्तिकमतवाहन नारिनकनये मनाहाकारासम्भवः मानस प्रत्यक्ष नवनास्तिकमत में नामुमकिन अनुमितित्वस्य परामर्शकार्यतावच्छेदता रामदाकारतावदक अमिनित्य दी है. स्याद्वादी अनुमितिकारणताविचारविमर्शः अनुमितिकाग्णनापां न्यभिचारप्रदर्शनम् अप्रामाण्यस्याननुगमः अपामाण्यग्रहाभावानामनुमिनिह तुतानहीकारः अपामाण्यज्ञानाभाव की स्वतन्त्र कागता नामुमकिन ग्नकांशकाग्मतानभ्युपगमः मुनावलीगमन्द्रीयनिरखण्डनम् अनुमिनीमि' का पिय विधयताविशेष ही है अनुमानस्य प्रमाणान्तग्ननियार: विषय राजदुतरानमितिल ही गतत्परामदांकार्यनादक मानसानुमितिमीमांसा अनमिति मानसपत्यविगप है नच नास्तिक लौकिकविषयताविष्यम् ६६३ अनुमिति को मानस प्रत्यक्ष मानने में बायब - नवनास्तिक भिन्नविषयकानुमिनः चक्षुमनोयोगविगमोनग्त्वम् मानसान्यसामग्रीप्रतिवभ्यताविचारः अपेक्षितशुद्धपाटप्रदर्शनम अनुमिनरपरोक्षतोषपादनम् विशिश्वैशिष्ट्याचगाहिज्ञाननिरूपणम् अनुमिनि 'गेश की है. . समाधान अनलादभोगविषयत्तोपपादनम् अनुमति का मानसप्रत्यक्ष में अन्नभांच मामुमकिन . नैयायिक मानसानुमितिनिराकरणम् उकालोपस्थितघटादिभानापादनम उत्तेजकावनिरूक्तिः नैयायिकसिद्धान्तसमीक्षा मानस प्रत्यक्ष में अनुमिति के अन्नभांत्र का समर्थन कापमात्रवृनिजातेः कार्यतावच्छेदकत्वनियमानङ्गीकारः विजातीयसुखादौत्तेजकत्वम गुरु-दुःख में अनुगत जातिविदोष का स्वीकार असतात ६७० परामर्शगादाधरीमंवादः मानसत्वन्यायानुमितित्वजात्यसिद्धिः "साक्षात्कगेमि' प्रतानि का आदन पाचं निरास अनुमितिविपयतायाङ्गीकारः अस्वासपीजाऽऽवेदनम् नत्तचिन्तामणिकृवचनमण्डनम दिशातिरेक रयावादरत्नाकर-तत्वार्थसिद्धसनीयचुन्यादिसंवादः अवगाहना स्वरूप विचार कान्ट-हंगलादिमतनिगमः दिशा और काल स्वतन्त्र य हैं. . नायिक अतिरिनाटिकालनिबारः आकाशातिरित दिशादच्य अनुपपन्न - म्यादादी मुक्तावली - दिनकरीयवृत्त्यानिराकरणम ददिकसम्बन्धवादी नवमत का निराकरण दीधितिकृन्मनापाकरणम् नत्वार्थसिद्धमेनीयवृनिसंवादः मान्दम्यवसिद्धि नन्द अभिघातजनक है . ग्याद्वादी ६८.५ .. . ६६.
SR No.090488
Book TitleSyadvadarahasya Part 3
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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