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________________ -wesom-moon स्वतन्भनामृतम्:-more |११ः 1. कृतप्रणाश : वस्तु जिस क्षण में उत्पन्न हुई थी यदि उसी है समय नष्ट हो जाती हो तो उस क्षण में किये कर्मो का फल भोगना है नहीं पड़ेगा। इसतरह किये हुए कर्म के फल का विनाश हो जायेगा । 12:- अकृतकर्मभोग : जिस विचारक्षण ने कर्मों को नहीं किया, उस विचारक्षण को बिना किये हुए कर्मों के फल को भोगने का प्रसंग। उपस्थित होने के कारण से अकृतकर्मभोग नामक महान दोष उत्पन्न । होगा । 13:- परलोकाभाव : पूर्वजन्म में किये हुए कर्म के फल से परलोक की प्राप्ति होती है । बौद्धमत में द्रव्य का उसी क्षण में नष्ट हो जाने के कारण वस्तु के साथ उसके कर्म भी नष्ट हो जायेंगे । ऐसे समय। में परलोक कैसे सम्भव हो सकता है ? 14- मोक्षाभाव : द्रव्य क्षणस्थायी होने से वह तप और त्यागादि । में प्रवृत्ति नहीं कर सकेगा । उसके गिला कर्मनाश होकर मोक्ष नहीं है हो सकता । इसतरह बौद्धमत को मानने पर मोक्ष के अभाव का! प्रसंग प्राप्त होगा । 25:- स्मृतिभंग : पूर्व ज्ञान के व्दारा अनुभूत पदार्थ का पुनः स्मरण । है करने को स्मृति कहते हैं । पूर्व ज्ञान के आधारस्वरूप द्रव्य का। क्षणभर में नाश हो जाने के कारण से परवर्ती क्षणों में स्मृति की। असंभवता माननी पड़ेगी । ऐसा मानने पर सम्पूर्ण लोकव्यवहार का विलोप हो जायेगा । ग्रन्धकार ने बौद्धदर्शन में सबसे बड़ा दोष प्रत्यभिज्ञान का। अभाव ही माना है । स्मृतिभंग को ही प्रत्यभिज्ञान का अभाव समझना चाहिये । श्रुतप्रामाण्यतः कर्म क्रियते हिंसादिना युत वृथेति अति न ------सम्भवात् ॥८॥ अर्थ : वेदादि श्रुत को प्रमाण मानकर उसके आधार से यज्ञादि कर्म । ६ में होने वाली हिंसा को युक्त मानने वालों की मान्यता वृथा है, क्योंकि उसमें धर्म की असंभवता है । Swamon-wesomeone-was-ecommeenawomasoom-nam 200-20200-40000
SR No.090486
Book TitleSwatantravachanamrutam
Original Sutra AuthorKanaksen Acharya
AuthorSuvidhisagar Maharaj
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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