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________________ : Proom-wor-momरवतन्यामागृतम messment भी नहीं था, फिर किस दुःख को दूर करने की इच्छा से ईश्वर के करुणा का भाव । उत्पन्न हुआ ? यदि कहो कि सृष्टि के बाद दुःखी जीवों को देखकर ईश्वर के करुणा का भाव उत्पन्न होता है, तो इतरेतराश्रय नामका दोष आता है, क्योंकि । का से जगत् की रणना हुई, और जगत की गहना से करुणा हुई। इस प्रकार ईश्वर के किसी भी तरह जगत् का कर्तृत्व सिद्ध नहीं होता। ___ इसतरह इस कारिका में ईश्वर के सृष्टिकर्तृत्व की मान्यता को खण्डत किया गया है । सत्वात् क्षणिक एवासौ, तत्फलं कस्य जायते । अपि दुर्ग्रहीत एवैतत् , प्रत्यभिज्ञादिबाधकात् ।।७।। अर्थ :है जीव क्षणिक होने से उसके ब्दारा किये गये कर्मों का फल है कौन भोगता है ? ऐसा दुराग्रह करने वाले बौद्धों की मान्यता झूठी है, क्योंकि वह मान्यता प्रत्यभिज्ञान से बाधित है । विशेषार्थ : बौद्धानुयायी कहते हैं कि सम्पूर्ण वस्तुयें क्षणस्थायी हैं । । उनका मत है कि संसार में कोई भी वस्तु नित्य नहीं है । प्रत्येक वस्तु अपने उत्पन्न होने के दूसरे ही क्षण में नष्ट हो जाती है, है क्योंकि नष्ट होना ही वस्तु का स्वभाव है । पदार्थों की नित्यता जो । दृष्टिगोचर होती है, वह भ्रममात्र है । जिसप्रकार दीपक की ज्योति प्रतिक्षण बदलती रहती है परन्तु समान आकार की ज्ञानपरम्परा से यह वही ज्योति है ऐसा प्रतिभास होता है, उसीप्रकार प्रत्येक वस्तु क्षणभर में नष्ट होते हुए भी हमें वह स्थिर प्रतीत होती है । वस्तु । को नित्य मानने पर वस्तु में अर्थक्रिया का अभाव हो जायेगा । जिसमें अर्थक्रिया नहीं होती, वह वस्तु सत् कैसे हो सकती है ? अतः वस्तु के क्षणिक मानना ही उचित है । जैनाचार्य उन्हें समझाते हैं कि आपका यह ऐकान्तिक कथन युक्ति से अबाधित नहीं है । बौद्धमान्यता का पोषण करने पर पाँच दोष लगते हैं । यथा
SR No.090486
Book TitleSwatantravachanamrutam
Original Sutra AuthorKanaksen Acharya
AuthorSuvidhisagar Maharaj
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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