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________________ ! करने का उल्लेख 'मल्लिषेण प्रशस्ति' में आया है। इन ऐतिहासिक तथ्यों से 'कथाकोष' एवं 'मल्लिषेण प्रशस्ति' के कथनों की प्रामाणिकता सिद्ध होती है तार्किकेश्वर दार्शनिकचूड़ामणि आचार्य भट्ट अकलंकदेव के यशोगानों से विभिन्न शिलालेख, प्रशस्तिलेख एवं परवर्ती आचार्यों के ग्रन्थ भरे पड़े हैं। इससे अकलंक का व्यापक प्रभाव जाना जा सकता है। अकलंकदेव के गरिमामय व्यक्तित्व एवं कृतित्व की इन मशोगीतियों की कतिपय बानगियाँ दृष्टव्य हैश्रवणबेलगोल के अभिलेख संख्या 47 में इन्हें 'साक्षात् षट्दर्शन- बृहस्पति' कहा गया है "चट्तर्केष्वकलंकदेवविबुधः साक्षादयं भूतले ।” एक अन्य अभिलेख में इनके द्वारा समस्त बौद्ध एकान्तवादियों को परास्त किये जाने की चर्चा की गयी है "भट्टाकलंकोऽकृत सौगतादि- दुर्वाक्यपड्कैस्सकलंकभूतम् । जगत्स्वनामेव विधातुमुच्चैः सार्थं समन्तादकलंकमेव । ।" अभिलेख संख्या 108 में इन्हें 'मिथ्यात्वरूपी अन्धकार को दूर करने के लिए सूर्य के समान' बताया है " ततः परं शास्त्रविदां मुनीनामग्रेसरोऽभूदकलंकसूरिः । मिथ्यान्धकारस्थगितास्त्रिलार्था: प्रकाशिता यस्य वचोमयूखैः । ।" धनञ्जय कवि ने 'नाममाला' में 'प्रमाण हो, तो अकलंक जैसा' कहा है"प्रमाणमकलंकस्य पूज्यपादस्य लक्षणम् ।" आचार्य जिनसेन ने 'भट्ट अकलंक के निर्मलगुणों को विद्वानों के हृदय की मणिमाला' कहा है “भट्टाकलंक - श्रीपाल - पात्रकेसरिणां गुणाः । विदुषां हृदयारूढाः हारयन्तेऽतिनिर्मलाः । । ” 'न्यायकुमुदचन्द्र' में अकलंकदेव को समस्त मतवादियोंरूपी गजराजों के दर्प का उन्मूलन करनेवाला 'स्याद्वादकेसरी पञ्चानन' कहा गया है“इत्थं समस्त-मतवादि-करीन्द्र- दर्पमुन्मूलयन्नमलमान दृढप्रहारैः । स्याद्वाद-केसर-सटाशत- तीव्रमूर्तिः पञ्चाननो जयत्यकलंकदेवः । ।" वहीं पर एक अन्य पद्य में अकलंकदेव को कुतर्करूपी अन्धकार के विनाशक, कुनीतिरूपी नदियों के शोषक ( सुखाने वाले), स्याद्वादरूपी किरणों से विश्व को vii
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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