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________________ अथ प्रथमो धर्मवर्गः प्रारभ्यते । १-तत्र देव-तत्त्व-विषये मालिनी छन्दसि -- सकल करम वारी मोक्षमार्गाधिकारी, त्रिभुवन उपकारी केवलज्ञानधारी । भविजन नित सेवो देव ए भक्तिभावे, दद्दिज जिन भजतां सर्व संपत्ति आवे ॥ ३ ॥ मो भव्याः ! सकलकर्म-वारको मुक्ति-मार्गमधिगतः, त्रिभुवनोपकारकः केवलज्ञानधारको, जिनेन्द्रो भक्तिभरितमानसैनित्यं सेव्यताम् । यतोऽईद्भक्तैरत्रैव सर्वसंपत्तिरवाप्यते ॥ ३ ॥ जिनवर पद सेवा सर्वसंपत्ति दाई, निशदिन सुखदाई कल्पवल्ली सहाई । नमि विनमिलहीजे सर्वविद्या बढ़ाई, ऋषभ जिनह सेवा साधतां तेह पाई ॥ ४ ॥ जिनचरणकमलसेवा सर्वो समृद्धि ददाति, अहर्निशं कल्पलतेव सर्व सौख्यश्च प्रयच्छति, यथा नमिर्विनमिश्रादिना यभचत्या सकलविद्यानिष्णातावभूताम् ॥ ४ ॥
SR No.090483
Book TitleSuktmuktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhupendrasuri
PublisherBhupendrasuri Jain Sahitya Samiti
Publication Year1997
Total Pages344
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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