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________________ . सूक्तिमुकाबली अर्थ- पवित्र सत्पात्र को दिया हुआ धन पारित्र का संचय करता है. विनय बढ़ाता है, ज्ञान की वृद्धि करता है, प्रशम ( शास) माव को परिपक्व करता है, तप को प्रबल बनाता है, आगम के ज्ञान को उल्लासित करता है आयात् शास्त्र ज्ञान की वृद्धि करता है, पुण्य की जड़ को पुष्ट करता है, पापों को नष्ट करता है, स्वर्ग देता है और क्रम से मोक्षलक्ष्मी को प्राप्त कराता है। सारांश-पात्र तीन प्रकार के है:-उत्चम, मध्यम, जघन्य । उत्तम पात्र मुनि, आर्यिका हैं। मध्यम पात्र व्रती श्रावक ग्यारहवीं प्रतिमा तक के धारी तथा जघन्य पात्र व्रत रहित सम्यग्दृष्टी हैं। उत्तम पात्रों को पान देने से उत्तम फल, मध्यम को देने से मध्यम, चौर जघन्य को देने से जपन्य फल मिलता है। इसका विशेष वर्णन श्रावकाचार प्रन्थों से जानना पर पात्र पान का फल संक्षेप में इस प्रकार है :( श्री समन्तभद्राचार्य ने रत्नकरण्डप्रावकाचार में कहा है। क्षितिगतमिव बटवीन. पात्रगत दानमल्पमपि काले। फलति पछायाविमन, बहुफल मिष्ट शरीरभृताम् ॥ जिस प्रकार पद [ बरगद का बीज बहुरा छोटा होता है परन्तु इस छोटे बीज से इतना विशाल वृक्ष होता है कि जिसकी छाया में हजारों पुरुष बैठ सकते हैं। इसी प्रकार पात्रों को भक्ति पूर्वक दिया हुआ घोड़ा भी दान विशिष्ट फल को देता है।
SR No.090482
Book TitleSuktimuktavali
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShanti Vir Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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