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सुगन्धदशमीकथा
बलिवंत । मो छोड तम्हणे गुणवंत || आपनी । चोर ओलखाको गुणधनी ॥३॥ सविशाल | साह आण्यौ निज वरि सविचार ||
नहि बर चोर अनो कुबरी पूछो तम्हे राय वयण सुण्या कुबरी बोलिचि तिणि आपनी बात पूलै चोर तणी ॥ ४ ॥ कैसो वर से तम्ह तणो चंग । ते सुम् आगलि कहो मन रंग ॥ तब कुचरी बोली गुणवंत । पाय धोविय' ओलखु जयवंत ||५|| साह कही सुणौ महाराज | चरन कमल ओलखि पुत्रि आज || तब राजा कहै सुणी
साह | मुझ तणी बुद्धि करो सविचार ||६||
जमवा तेरौ सयल परिवार । घर बोलायौ गुणधार ||
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चरण कमल ओलख तेह तथा । मान दिन दिऊ अति घणा ॥७॥
साह्रै बोल माण्यौ गुणवंत । अनेक कुबरनहु तय जयवंत ॥ निज घर बोलाच्या देह मान । आव्या कुवर सयल सुजान ॥ ८॥ पsaौ बाँधि तिहा अति चंग। एक एक कुबर बेठ्या उत्तंग ||
चरण कमल काढि कर कमल सरखारतो फल ए माहि नहि मुझ तब भूषै देखाडौ हाथे लेइ जोया एह वर मुझ तण
तणो निज
जोइ । सुगंध कुवरि कहि ए नवि होइ ॥ १ ॥ पाय । पद्म चिह्न ते वलि ते काय ॥ कंत । इम जाण्यौ सजन जयवंत ॥ १०॥ पाय । वस्त्र करि ढाकि बलिं काय ॥ सविचार | ओलख्या हरिणी तिथे वार ॥ ११॥ गुणवंत । मे लाभ स्वामी गुणवंत ||
तब राजा ह
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सुजान | प्रगट हवौ जिम दिनकर भान || १२ || सजन आनंद्या तिहा जयवंत जिनदास साह हुवो जयवंत ॥ विवाह महोछव कियो तिहा चंग । राजा परणौ तिहा उत्तंग ॥ १३ ॥ परनि कुवरि भाग्यौ सविचार | हरष चदन हुवौ गुणधार ॥ पटरानी थापी निज चंग। धर्म फल तिहा उतंग || १४ || तब राजा कोप्यो अति थोर । रूपिणि उपरि सुनो घनघोर || इणि ए कपट कीयाँ गुणहीन । हत्रे दंड दियू करू दीन || १५ || तब सुगंध कुवरि सविचार | बोलि सुललित सुणौ गुणमाल || ए मुझ माता सुणौ तब राजा रीझो मन
तम्हे
धीर । एहनि दंड झनि देउ गंभीर ||१६|| माहि । क्षमा तणी गुण निर्मल चाहि || चंग । राजा सौख्य भोगवह उत्तंग ॥ १७॥ अवतार | एह कन्हे समकित होसै सार ॥
धन
धन ए तणौ
मत
धन
धन ए नारि
परसंसा
करह
तेह
तणी । सजन श्रावक भवियण अति घणी ॥ १८ ॥
[ ६, ३
१. स दि २. स देखाडो, ३. स दान, ४ सनिवत्मा, ५. स सरिखा छे कोमल, ६. सराय, ७. स एहने ।