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सुगन्धदशमीकथा
[६,८लगन दिवस आन्यो रूवडाए-सुन सुंदरि-रूपिनि बोली तब वानि । सुगंधकुवरि तम्हे सुणोए-सुन सुंदरि-जिम होइ सुख खानि ॥८॥ विवाह करू हवे तम्ह तणौए-सुन सुंदरि-आव्यो तम्ह अम्ह साथ | हा कदि ई निसीए-सुन सुंदर साड़िय जमणे हाथ ॥९|| मसान माहि लेइ करिए-सुन-सुंदरि-मकिप ते सुणो बाल । चहु गमा दिप बलै घणाए-सुन सुंदरि-सुगंधा बेटि गुणमाल ॥१०॥ चहु गमा च्यारि ध्वजा रोपियोए-सुन सुंदरि-लहलहै अतिहि अपार । इहा आवे कुवर रूवडोए-सुन सुंदरि-ते परणीजो सबिचार ॥११॥ इम कहि पाछि बलिए-सुन सुंदरि-आविए निज घरि चंग। फोलाहल करइ अति धणोए-सुन सुंदरि-जन जन आगलि रंग ॥१२|| जो जो सजन सुहायणाए-सुन सुंदरि-जो जो बाल गोपाल । विवाह मेलव्यो मे रूबडिए-सुन सुंदरि-कुवरि नहि सविचार ॥१३॥ विवाही ते आवियाए-सुन सुंदरि-किहा गइ सुगंधि कुवार। हा हा घरि हुवौ घणौए-सुन सुंदरि-जोवे घर-घर चाल ॥१४॥ मे कहियों होतो आग लिए- सुन सुंदरि-ए बेटी नहि संत | विवाह दिन नासी गइए-सुन सुंदरि-तम्हे न जाणो जयवंत ॥१५॥ तम्हारि पोते पुण्य घणाए-सुन सुंदरि-भाग्यवंत एह पर | पासे न पडिया पह तणाए-सुन सुंदरि-इम जाण्यौ पुण्यघार ॥१६॥ हवे गला किम जाइ-सुन सुंदरि-तम्हे सजन गुणावंत । मुझ बेटि गुण आगलिए-सुन सुंदरि-ते दियु जयवंत ॥१७॥ तव तिणे बोले मानियौए-सुन सुंदरि-परणि स्यामा सविचार । ते गया निज स्थानकेए-सुन सुंदरि-धर्म करइ भवतार ॥१८॥ ए कथा हवे इहा रहिए-सुणो सुंदरि-अचर सुणो गुणवंत ।
तम्ह जिनदास भणे रूबडोए-सुन सुंदरि-जिम सुख होई महंत ॥१९॥ दृहा-सुगंध कुचरि रूचडी मसान माहि बेठी जाण ।
एकलही गुणे आगली रूप सियल गुणखान ॥२०॥ ते नयरको राजियो कनकप्रभ तेह नाम । मध्यराति ते उठियो गोक्ष बैटो गुण जाने ॥२१॥ दिपमाला दिठि रूवडी मसान माहि सचिसाल । कुपरि दीठि बलि निरमलि विस्मय पाम्यौ गुणमाल ॥२२॥ कौतुक जोवा कारणेइ एकलडोए जयवंत । खडग हाती धरि करी आव्यौ तेह गुणवंत ॥२३॥
१. स परिय जिम नइ हाथ, २. स लहकती, ३, स जन आगलि रडे मनि रंग, ४. स दीठो बर, ५. स सविशाल, ६. स बिहाई, ७. स मानौ, ८. स कहा, ९. स शील, १०. स गोष्टी करइ सुजान, ११. स आज्या तिहा जयवंत ।